वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा कि बैंक तथा वित्तीय संस्थान ये सुनिश्चित करें कि ग्राहक अपना नॉमिनी दर्ज करें। ऐसा करने से दावा जमा की समस्या से निपटने में मदद करेगा, इसका अर्थ ये है कि नॉमिनी और उत्तराधिकारी में अंतर होता है, आईए जानते हैं कि नॉमिनी और उत्तराधिकारी में फर्क होता है।
अक्सर लोग समझते है कि नॉमिनी और उत्तराधिकारी एक ही होते हैं, जबकि आपको बता दें कि नॉमिनी और उत्तराधिकारी में अंतर होता है, साथ ही दोनों के अधिकारों में भी अंतर होता है।
कौन होता है नॉमिनी?
कानून के अनुसार जानकार बताते हैं कि कोई बीमा कंपनी की नॉमिनी होना मालिकाना हक नहीं दिलाता है। अगर किसी खाताधारक ने किसी को नॉमिनी बनाया है तो वो सिर्फ खाते के लेनदेन की सहूलियत के लिए है। इसका अर्थ ये है कि नॉमिनी होने का मतलब खाते का वारिस होना नहीं है अगर नॉमिनी है वारिस नहीं तो प्रॉपर्टी उसके वैध वारिसों में बाँट दिया जाता है।
कौन होता है उत्तराधिकारी
संपत्ति का उत्तराधिकारी वो होता है जिसे वैध रूप से संपत्ति सौंप दी जाती है। हिन्दू उत्तराधिकारी 1956 अधिनियम के अनुसार संपत्ति के पहले उत्तराधिकारी में माँ, विधवा पत्नी, बेटा-बेटी होते हैं और इन्हें क्लास 1 उत्तराधिकारी कहा जाता है।
क्लास 2 में पिता, पुत्र व पुत्री का बेटा या बेटी, भाई- बहन, भाई और बहन की संतान इस उत्तराधिकारी लिस्ट में आते हैं। अगर मृतक मुस्लिम है तो मुस्लिम शरीयत कानून 1937 के अंतर्गत वारिस तय होता है। क्रिश्चियन धर्म में कानून के अनुसार कानून 1925 के तहत तय होता है, इसके अनुसार पत्नी, बेटा-बेटी वारिस माने गए हैं।
उत्तराधिकारी नहीं हो, तब ही दावेदारी
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर किसी ने अपने बैंक नॉमिनी में अपने बड़े बेटे का नाम लिखा है और उसकी मौत हो जाती है तो उस बैंक पॉलिसी के पैसे सिर्फ उस बेटे को नहीं बल्कि वसीयत में जितने भागीदार है, उन सबको बराबर पैसा मिलेगा। इस तरह कई लोग समझते हैं कि नॉमिनी और उत्तराधिकारी एक ही होते हैं लेकिन इनमें बड़ा अंतर होता है और inके अधिकार भी अलग होते हैं।