Life Imprisonment : देश में अपराधी को आईपीएस की धारा के तहत सजा सुनाई जाती है। वहीं कई बार कोर्ट की ओर से सुनाई गई सजा को लेकर लोगों के बीच कंफ्यूजन की स्थिति बनी रहती है। कुछ दिनों पहले सांप से कटवा कर हत्या करने के जुर्म में एक शख्स को केरल की कोल्लम सेशन कोर्ट ने दोहरी उम्र कैद की सजा सुनाई है।
अब लोगों के मन में यह सवाल आ रहा है कि उम्र कैद की सजा में ये दोहरी उम्र कैद क्या है। वहीं कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि उम्र कैद की सजा होने के बाद भी अपराधी 14 या 20 साल में जेल से छूट जाता है। इसके भी पाने कानून है। तो आइए आज सभी सवालों को जानने की कोशिश करते हैं।
आजीवन कारावास की सजा पाने वाले व्यक्ति को 14 साल या 20 साल की सजा काटने के बाद रिहा कर दिया जाता है। आपको बता दें कि इसके पीछे की वजह कुछ और ही है। दरअसल, राज्य सरकारों के पास कुछ मानदंडों के आधार पर किसी व्यक्ति की सजा कम करने की शक्ति होती है।
यही कारण है कि हम अक्सर सुनते हैं कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे व्यक्ति को 14 साल या 20 साल बाद रिहा कर दिया जाता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 55 और 57 में सरकारों को सजा कम करने का अधिकार दिया गया है।
इससे भ्रम की स्थिति पैदा होती है
आईपीसी की धारा 57 आजीवन कारावास की अवधि से संबंधित है। इस धारा के अनुसार कारावास के वर्षों की गिनती करने पर कारावास के बीस वर्ष के बराबर गिना जायेगा। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आजीवन कारावास केवल 20 वर्ष का ही होता है।
अगर कोई गणना की जाए तो आजीवन कारावास को 20 साल के बराबर माना जाता है। गणना की आवश्यकता तब उत्पन्न होती है जब किसी को दोहरी सजा सुनाई गई हो या जुर्माना न चुकाने पर किसी को लंबी अवधि तक जेल में रखा गया हो।
सरकारों को सजा देने के आदेश
आजीवन कारावास का अर्थ है कि अपराधी जब तक जीवित रहेगा तब तक जेल में ही रहेगा। लेकिन सरकार इस सज़ा को कम कर सकती है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (सीआरपीसी) की धारा 433 के तहत सरकार को अपराधी की सजा कम करने का अधिकार है। सरकार सीआरपीसी की धारा 433 के तहत इन चारों तरह की सजा को कम कर सकती है।