डेस्क : देश में लोग सरकार से अपनी मांगें पूरी करवाने के लिए विरोध प्रदर्शन करते हैं। इन आंदोलनों में कई बार आंदोलनकारी इतने आक्रामक हो जाते हैं कि तोड़फोड़ और दंगे की स्थिति पैदा हो जाती है। अपने अधिकारों के लिए आंदोलन तो हमेशा से होता रहा है, लेकिन इसके लिए भी कानूनी दायरा तय किया गया है। कई बार इसके बारे में जानना जरूरी हो जाता है। ऐसे कई आंदोलन देखे गए हैं जिनमें बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज किए गए हैं। आज इस लेख में हम आंदोलन से जुड़ी कई कानूनी बातें जानेंगे।
आंदोलन, बंद, चक्का जाम कितना गैरकानूनी
अनजाने में लोग यह मानकर ऐसे आंदोलनों में कूद पड़ते हैं कि यह अपराध है, अधिकार तो दूर की बात है। भारत का संविधान हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है लेकिन इसमें कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। इन्हीं अधूरी जानकारियों के आधार पर लोग उत्साहपूर्वक ऐसे आंदोलनों का हिस्सा बन जाते हैं और खुद को खतरे में डाल देते हैं।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 भारतीय नागरिकों को कई अधिकार देते हैं। लेकिन अनुच्छेद 19 में इसका विशेष उल्लेख है। यह बोलने और लिखने की आज़ादी, शांतिपूर्ण सभा करने की आज़ादी, कोई भी संगठन बनाने की आज़ादी, पूरे देश में घूमने की आज़ादी, देश के किसी भी कोने में रहने और व्यापार करने की आज़ादी देता है।
इस पर बिल्कुल कोई असहमति नहीं है। लेकिन अगर आप नॉर्थ-ईस्ट के किसी राज्य में बसना और बिजनेस करना चाहते हैं तो उसके लिए कुछ अलग प्रावधान बनाए गए हैं, जिनका पालन करके ही आप आगे बढ़ पाएंगे। इसे सभी को पढ़ना और जानना चाहिए।
संविधान क्या कहता है?
साल 2019 में भारत सरकार ने एक कानून के जरिए देश के लोगों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने और वहां बसने की आजादी दे दी है, जो पहले नहीं थी। लेकिन यही अनुच्छेद 19(2) हम भारतीय नागरिकों पर राष्ट्रहित में कई प्रतिबंध भी लगाता है, जिनका पालन न करने पर कानूनी कार्रवाई और जेल भी हो सकती है।
कर्नाटक या पंजाब जैसे बड़े बंद के आह्वान की ऐसी कई कहानियां हैं, जो आज भी अदालतों के चक्कर काट रही हैं। खासकर ऐसे आंदोलनों के दौरान जब सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है, आगजनी या दंगे किये जाते हैं तो एक अलग तरह का संकट खड़ा हो जाता है जिसकी कीमत जेल जाकर चुकानी पड़ती है।