ऐसा माना जाता है की उर्दू भाषा की खोज बारहवीं शताब्दी में दिल्ली के इलाके में हुआ था और उसके बाद धीरे–धीरे पुरे हिंदुस्तान में दूसरे नंबर पर बोली जाने वाली भाषा बन गई थी। अक्सर देखा जाता है उर्दू के कुछ किसमें पाई जाती है जैसे दकनी उर्दू और लखनवी उर्दू जैसे और भी कुछ किसमें है। बिहार से भी इन सब किस्म से अलग एक किस्म की उर्दू चलती है जिसके अक्सर शब्द दूसरे उर्दू अदब से अलग पाए जाते हैं।
सय्यद अमजद हुसैन (Syed Amjad Hussain) द्वारा लिखी गई, “अख्तर ओरेनवी: बिहार में उर्दू साहित्य के निर्माता” नामक पुस्तक में अमजद लिखते थे, “अख्तर ओरेनवी अजीमाबादी उर्दू को देश में अलग पहचान दिलाना चाहते थे, लेकिन उनकी यह तमन्ना पूरी न हो सकी, लेकिन अख्तर ओरेनवी हमेशा अपनी किताबों में बिहार के गांवों से निकली हुई शब्दों का बहुत इस्तेमाल किया करते थे।”
अमजद से हमारी बात–चित में उन्होंने बताया, अख्तर ओरेनवी की एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी भेट हुई थी जहां अख्तर ने उन्हें एक पुस्तक दिया था, जिसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पढ़ा और अपनी टिप्पणी भी दिया था। बिहार में उर्दू साहित्य को समृद्ध बनाने में एक जरूरी पहल अख्तर ओरेनवी के द्वारा किया गया था, वह अपने ही जिंदगी मौत से इतने बार जूझते रहे की अज़ीमाबादी उर्दू उस पटखनी में मार खा गई और आज अज़ीमाबादी उर्दू का कहीं नाम व निशान नहीं है।
कौन हैं युवा लेखक
सय्यद अमजद हुसैन बिहार के शेखपुरा जिला से ताल्लुक रखते हैं, उनकी शिक्षा एस ए डी एन कॉन्वेंट और डीपीएस शेखपुरा से हुई है। वह फिलहाल मौलाना अबुल कलाम आजाद यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी से बीबीए की पढ़ाई कर रहे हैं।