Nalanda University : भले ही भारत आज शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया का सर्वोत्तम देश ना हो मगर एक जमाने में लोग विदेश से यहां शिक्षा प्राप्त करने आते थे। एक समय में भारत दुनिया के प्रमुख शैक्षणिक केंद्रों में से एक था।
आपको बता दें कि भारत में दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। जिसको हम नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के नाम से जानते हैं।दुनिया के इस प्राचीनतम विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में हुई थी जिसकी स्थापना गुप्त काल के दौरान कुमारगुप्त प्रथम ने करवाई थी।
एक समय में उच्च शिक्षा का मुख्य केंद्र माना जाने वाला नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) आज एक खंडहर बन चुका है। बता दें कि इस महान विश्वविद्यालय को खिलजी ने नष्ट करवाया था। खिलजी जिसका पूरा नाम इख्तियाररूद्दीन मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी था उसके कहने पर नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगा दी गई।
नालंदा विश्वविद्यालय में 10000 विद्यार्थी ग्रहण करते थे शिक्षा
आश्चर्य की बात यह है कि जहां की शिक्षा व्यवस्था पर हमेशा से सवाल उठता आ रहा है। यह विश्वविद्यालय वहीं स्थित है। जी हां, नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) पटना (बिहार) से 88.5 किलोमीटर दक्षिण पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में एक गांव के समीप स्थित है।नालंदा विश्वविद्यालय उस समय विश्व का सबसे पहला आवासीय विश्वविद्यालय था। यहां पर लगभग 10,000 विद्यार्थी थे। जबकि शिक्षकों की संख्या 2000 थी।
इस विश्वविद्यालय में भारत से ही नहीं बल्कि जापान, तिब्बत चीन, इंडोनेशिया तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। मगर 1193 में शिक्षा के मुख्य केंद्र को हमेशा के लिए नष्ट कर दिया गया। बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय को बख्तियार खिलजी ने हमेशा हमेशा के लिए पतंग की आग में झोंक दिया।
खिलजी ने क्यों जलाया नालंदा विश्वविद्यालय
नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) को जलाने के पीछे एक बड़ी वजह है। यह उस समय की बात है जब बख्तियार खिलजी ने बौद्ध द्वारा शासित उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया। एक बार खिलजी बुरी तरह से बीमार हो गया। उसका इलाज हुआ मगर वह ठीक नहीं हो पा रहा था। हकीमों ने हार मान ली। फिर किसी ने खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रा से इलाज करवाने की सलाह दी। मगर खिलजी ऐसा नहीं करना चाहता था।
उसे भारतीय वैद्यों पर यकीन नहीं था। वह भारतीय वैद्यों को उतना काबिल नहीं समझता था। मगर जब जीवन और मृत्यु का सवाल आ खाड़ा हुआ तो उसने मजबूरी में राहुल श्रीभद्र से इलाज करवाने के लिए हामी भर दी। हालांकि उसने राहुल श्रीभद्र के सामने एक शर्त रखी। उसने कहा कि वह दवा का सेवन नहीं करेगा। श्रीभद्रा ने खिलजी की बात मान ली। वे खिलजी के बिना दवा के उसको ठीक करने की शर्त मान वहां से चले गए।
कुछ समय के बाद वह वापस एक कुरान लेकर पहुंचे और खिलजी से कहा कि कुछ दिनों तक वह इस कुरान के पन्नों को पढ़े इससे उसका स्वास्थ्य ठीक हो जाएगा।खिलजी ने वैसा ही किया। कुछ दिनों तक कुरान पढ़ने के बाद वह ठीक हो गया। ऐसा कहा जाता है कि राहुल श्रीभद्र ने कुरान के पन्नों में दवा का लेप लगा दिया था। खिलजी थूक से उन पन्नों को जब पलटता तब दवा उसके मुंह में चली जाती। इसके कारण धीरे-धीरे वह ठीक होता चला गया।श्रीभद्र का आभार मानने के बजाय वह नाखुश हो गया।
खिलजी इस बात से परेशान हो गया कि एक भारतीय शिक्षण उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञानी कैसे हो सकता है। इसके बाद उसने भारत से ज्ञान, आयुर्वेद और बौद्ध धर्म को हमेशा के लिए खत्म करने की ठान ली।
बता दें कि खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगवा दी और इस पुस्तकालय में मौजूद 9 मिलियन पांडुलिपियां नष्ट हो गई। कहा जाता है कि यहां पुस्तकों का ऐसा भंडार था कि महीनों तक आग बुझ नहीं पाई थी। इतना ही नहीं खिलजी के कहने पर नालंदा के हजारों विद्वानों की भी हत्या कर दी गई।