Electoral Bonds के बारे में क्या जानते हैं आप? जानिए- पक्ष और विपक्ष के बीच क्यों मचा है बवाल……

Electoral Bonds : इन दिनों देश में एक शब्द की काफी चर्चा हो रही है, इसका नाम है इलेक्ट्रोल बॉन्ड। इस इलेक्ट्रोल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को फैसला सुनाया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह चुनावी बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक है। इसमें प्राप्त हर चंदा किसी लाभ के लिए नहीं है।

अब इस बॉन्ड के तहत सरकार को मिलने वाले चंदा की सूची जारी की जा रही है। इस सूची में कई देशों के नाम हैं जहां से राजनीतिक दलों को चंदा मिला है। इसके बाद देशभर में इसकी चर्चा तेज है। हालाँकि, लोग अभी भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड क्या है? तो आइए सबसे पहले जानते हैं कि यह बॉन्ड क्या है और यह कैसे काम करता है।

Electoral Bonds क्या है?

Electoral Bonds राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे से संबंधित हैं। दरअसल, चुनावी बांड के जरिए वित्तीय साधन के तौर पर काम करने वाला कोई भी व्यक्ति या कारोबारी अपना नाम बताए बिना किसी भी पार्टी को चंदा दे सकता है। योजना के प्रावधानों के अनुसार, भारत का कोई भी नागरिक या देश की कोई भी नियमित या स्थापित इकाई चुनावी बांड खरीद सकती है। ये बांड कई रूपों में उपलब्ध हैं। जिनकी कीमत एक हजार से एक करोड़ रुपये तक है। यह बांड भारतीय स्टेट बैंक की किसी भी शाखा से लिया जा सकता है। साथ ही यह दान ब्याज मुक्त है।

गुप्त है चंदा देने वालों की पहचान

Electoral Bonds की खास बात यह है कि यह किसी भी पार्टी को चंदा देने वाले दानकर्ता का नाम गुप्त रखता है। यानी इससे किसी दानकर्ता की पहचान उजागर नहीं होती। हालाँकि, सरकार और बैंक दाता की वैधता सुनिश्चित करने और ऑडिटिंग के लिए इसके रिकॉर्ड बनाए रखते हैं। लेकिन अब कोर्ट के सुनवाई के बाद से बड़े अमाउंट में मिले चंदे को जारी किया जा रहा है।

पार्टियों को अब तक कितना मिला चंदा?

आपको बता दें कि वित्त वर्ष 2017 से 2021 के बीच 9 हजार 188 करोड़ रुपये का चंदा मिला है। यह चंदा 7 राष्ट्रीय पार्टियों और 24 क्षेत्रीय पार्टियों से आया था। इन पांच सालों में बीजेपी को 5,272 करोड़ रुपये, तृणमूल कॉन्ग्रेस को 1609.5 करोड़ रुपये ओर कांग्रेस को 1421.9 करोड़ रुपए मिला है। चंदा लेने में कई अन्य पार्टियां भी शामिल है, लेकिन इन तीन पार्टियों को सबसे अधिक चंदा मिला है।