Kanwar Tal : विश्व प्रसिद्ध रामसेर साइट काबर टाल में प्रवासी पक्षियों का अवैध शिकार थमने का नाम नहीं ले रहा है। न तो प्रशासन की सख्ती दिख रही है और न ही समाज की ओर से कोई प्रभावी पहल। आरोप है कि संरक्षित क्षेत्र में शिकारी स्थायी जाल लगाकर प्रवासी चिड़ियों का शिकार कर रहे हैं और इसमें वन विभाग के कुछ कर्मियों की मिलीभगत भी बताई जा रही है।
स्थानीय लोगों के अनुसार मछुआरे जाल के माध्यम से निर्मूक प्रवासी पक्षियों को पकड़ते हैं और उनके मांस को ऊंचे दामों पर बेचते हैं। पक्षियों का मांस गर्म मानकर खाने के शौकीनों के बीच इसकी खास मांग है। यह स्थिति पक्षी प्रेमियों और पर्यावरणविदों के लिए गहरी चिंता का विषय बन गई है।
काबर टाल भारत के प्रमुख प्रवासी पक्षी आश्रय स्थलों में से एक है। हर साल शीत ऋतु में यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। अक्टूबर के मध्य से इनका आगमन शुरू होता है और मार्च तक ये यहां डेरा जमाए रहते हैं। हिमालयी क्षेत्रों में पड़ने वाली बर्फबारी, तेज ठंडी हवाओं और प्रतिकूल मौसम से बचने के लिए ये पक्षी हजारों किलोमीटर की यात्रा कर भारत के जलीय क्षेत्रों में पहुंचते हैं।
बाम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में यह सामने आया है कि काबर टाल में आने वाले पक्षी हिमालय के उत्तरी हिस्सों के अलावा मंगोलिया, चीन, मध्य एशिया, रूस और साइबेरिया तक के क्षेत्रों से आते हैं। शोध के दौरान पक्षियों के पैरों में छल्ला पहनाकर उनके आवागमन के मार्ग और वासस्थलों की पहचान की गई थी।
हजारों किलोमीटर की दूरी तय कर आने वाले इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए यहां कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। हाल ही में भारत सरकार ने काबर टाल को अंतरराष्ट्रीय महत्व का रामसेर साइट घोषित किया है, इसके बावजूद जैव विविधता की रक्षा के दावे जमीन पर कमजोर नजर आ रहे हैं।
प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा को लेकर स्थानीय स्तर पर काम करने वाली संस्था काबर नेचर क्लब के संरक्षक महेश भारती का कहना है कि वर्षों से यहां पक्षियों का शिकार होता आ रहा है और इसकी जानकारी वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को भी है। इसके बावजूद सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं। उन्होंने बेगूसराय के जिलाधिकारी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा वन एवं पर्यावरण विभाग के अधिकारियों से काबर टाल क्षेत्र में प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है।
हाल के दिनों में वन विभाग द्वारा शिकार में इस्तेमाल होने वाले कुछ जालों की जब्ती जरूर की गई है, लेकिन क्षेत्रफल बड़ा होने और वनरक्षकों की भारी कमी के कारण विभाग खुद को असहाय बता रहा है। यदि समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो काबर टाल की जैव विविधता और यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों पर गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।
