Begusarai News

जयंती विशेष : बेगूसराय से बरौनी तक, बिहार के विकास का अध्याय लिख गए श्री बाबू…

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Begusarai News : बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री और महान स्वतंत्रता सेनानी ‘बिहार केसरी’ डॉ. श्रीकृष्ण सिंह उर्फ़ श्री बाबू की जयंती आज पूरे देश में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जा रही है। आजादी के बाद जब भारत ने संविधान और लोकतंत्र के साथ विकास की नई राह पकड़ी, उस दौर में बिहार को नई दिशा देने वाले नेता थे बिहार केसरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह। उन्होंने न केवल राजनीति में स्वच्छता और ईमानदारी की मिसाल कायम की, बल्कि बिहार की औद्योगिक, कृषि और सामाजिक प्रगति की मजबूत नींव रखी।

सिमरिया पुल बेगूसराय के विकास का द्वार

प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान बिहार में गंगा पर पुल बनाने की योजना बनी। स्थान चयन को लेकर मतभेद थे, पर श्री बाबू ने निर्णय लिया कि पुल बिहार के मध्य में, बेगूसराय और मोकामा को जोड़ने वाले सिमरिया में बने। प्रसिद्ध इंजीनियर सर एम. विश्वेश्वरैया को बुलाया गया। तमाम विरोधों के बावजूद पुल वहीं बना। यह पुल न केवल बेगूसराय बल्कि पूरे उत्तर बिहार के विकास का आधार बना। अगर यह पुल नहीं होता, तो बेगूसराय की आज की पहचान शायद न होती।

बेगूसराय बना औद्योगिक हब

1955–56 में बेगूसराय में थर्मल पावर हाउस की स्थापना हुई। श्री बाबू और रामचरित्र बाबू ने राज्य में दो बिजली कारखाने स्वीकृत कराए एक पतरातू (झारखंड) और दूसरा बेगूसराय के लिए। कठिन परिस्थितियों, साधनों की कमी के बावजूद यह कारखाना चालू हुआ और बेगूसराय को ‘उत्तर बिहार का टाटा नगर’ बनने की दिशा मिली।

बरौनी रिफाइनरी

तेल उत्पादन क्षेत्र असम में था, पर तेलशोधक कारखाना खुला बिहार में बरौनी रिफाइनरी। बंगाल और यूपी भी इस परियोजना के लिए प्रयासरत थे, पर श्री बाबू ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से इसे बिहार में स्थापित कराया।
1959 में भूमि अधिग्रहण, 1961–64 के बीच निर्माण और 15 जनवरी 1965 को इसका उद्घाटन हुआ। यह भारत की दूसरी सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरी थी। असम से 1200 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन से कच्चा तेल लाया गया। यह श्री बाबू की ही देन थी कि बेगूसराय अंतरराष्ट्रीय पहचान पा सका।

खाद कारखाना किसानों का वरदान

बरौनी रिफाइनरी के बाद श्री बाबू ने खाद निर्माण कारखाने का सपना देखा। 1960-61 के प्रस्ताव को 1967 में स्वीकृति मिली और 1976 में उत्पादन शुरू हुआ। यहां से उत्पादित यूरिया ने उत्तर भारत के किसानों को नई ताकत दी। यह औद्योगिक विस्तार बरौनी को ‘मिनी कलकत्ता’ बनाने की दिशा में श्री बाबू की एक और पहल थी।

दुग्ध क्रांति की नींव

1959 में श्री बाबू ने बरौनी में मक्खनशाला (डेयरी यूनिट) की स्थापना की। यही आज की प्रसिद्ध सुधा डेयरी है, जो हजारों किसानों और पशुपालकों की आर्थिक रीढ़ बन चुकी है। 1989 में इसे सहकारी समिति के रूप में लोकतांत्रिक ढंग से चलाया जाने लगा। इस डेयरी ने न केवल बेगूसराय बल्कि खगड़िया, समस्तीपुर, मुंगेर, लखीसराय सहित कई जिलों के ग्रामीण जीवन को समृद्ध किया।

कृषि और जल प्रबंधन

आजादी से पहले ही श्री बाबू ने बाढ़ और जलजमाव से त्रस्त किसानों की समस्या समझी। आजादी के बाद उन्होंने काबर–बगरस नहर और सुलिस गेट योजना जैसी परियोजनाओं से लाखों एकड़ भूमि को खेती योग्य बनाया।
बेगूसराय के उत्तरी इलाके को कृषि प्रधान बनाया गया, जबकि दक्षिणी भाग को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया। यही संतुलित विकास नीति श्री बाबू की पहचान बनी।

औद्योगिक बिहार का शिल्पी

1963–64 में बरौनी औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना के साथ 170 एकड़ में 175 से अधिक छोटी औद्योगिक इकाइयाँ खुलीं। हजारों लोगों को रोजगार मिला। दुर्भाग्यवश, बाद की सरकारों की उपेक्षा से यह औद्योगिक क्षेत्र बीमार पड़ गया, लेकिन श्री बाबू का सपना आज भी जीवित है।

विकास की राजनीति का पर्याय

श्री बाबू की राजनीति केवल सत्ता के लिए नहीं थी, बल्कि “गुड गवर्नेंस और जनसेवा” के आदर्श पर आधारित थी।
उन्होंने हटिया, पतरातू, सिंदरी, डालमियानगर जैसे औद्योगिक केंद्रों और कोसी, गंडक, सोन, कमला जैसी नदी परियोजनाओं से बिहार की तकदीर बदली।

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