Sharad Yadav न होते तो बिहार में नहीं आता Lalu Yadav का राज, जानें – पूरी कहानी..

Sharad Yadav : बीते दिनों समाजवादी नेता शरद यादव का निधन हो गया। शरद यादव (Sharad Yadav) भारतीय राजनीति में एक बड़ी भूमिका निभाते रहे। पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव (Sharad Yadav) के निधन पर देश के तमाम बड़े नेता नेताओं ने शोक व्यक्त किया। मध्यप्रदेश के जबलपुर में जन्मे शरद यादव ने कर्मभूमि के रूप में बिहार को चुना।

दिवंगत नेता शरद यादव एक कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते रहे। इन्हें याद करने के लिए कई किस्से मौजूद हैं, जिसे कभी भुला नहीं जा सकता है। लेकिन जब शरद यादव का जिक्र हो और लालू प्रसाद यादव और इनके संबंध को नहीं याद किया जाए तो यह कहीं न कहीं इनके जीवन के तमाम हसीन और कठिनाई भरे किस्सों के साथ नाइंसाफी जैसा प्रतीत होगा

लालू यादव को मुख्यमंत्री बनाने में अहम हाथ

जेपी आंदोलन से निकले शरद यादव और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बीच कई बार संबंध सुधरे और बिगड़े भी ऐसा कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनाने में इनका एक अहम रोल रहा। इसलिए जब शरद यादव के निधन का समाचार, सिंगापुर में ईलाज करा रहे लालू प्रसाद तक पहुंचा, तो उन्होंने अपने शोक संदेश में उन्हें अपना बड़ा भाई कहा। साथ ही उन्होंने कहा कि वे महान समाजवादी नेता थे, स्पष्टवादी थे। उनसे मैं कभी-कभी लड़ भी लेता था, मतभेद होता, लेकिन मनभेद नहीं हुआ।

लालू प्रसाद के राजनीतिक करियर में शरद यादव का अहम योगदान रहा है। साल 1990 की बात है जब बिहार में जनता दल से मुख्यमंत्री चुना जाना था। उस वक्त वीपी सिंह के उम्मीदवार राम सुंदर दास की जगह लालू प्रसाद यादव को बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलाने में शरद यादव का हाथ था।

लालू प्रसाद यादव ने भी इस उपकार का बदला चुकाया और उनकी मदद से शरद यादव ने बिहार के मधेपुरा से न सिर्फ चुनाव जीता, बल्कि इसे अपनी कर्मभूमि भी बना लिया। लेकिन बाद में उसी लालू प्रसाद यादव से तनातनी बढ़ती चली गई। और हालात ये बने कि जनता दल अध्यक्ष पद के लिए शरद यादव और लालू यादव आमने-सामने आ गए। स्थिति को भांपते हुए चारा घोटाले में फंसे लालू यादव ने राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया। और यहीं से दोनों के बीच राजनीतिक दूरी आ गई।

इसके बाद 2013 में नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी से चुनाव प्रचार की कमान मिलने तक शरद यादव एनडीए से जुड़े रहे। लेकिन मोदी की कमान आने के बाद उन्होंने एनडीए के संयोजक पद से इस्तीफा दे दिया। फिर नीतीश कुमार से भी उनकी दूरियां हो गईं। और उन्हें जद (यू) से भी निष्कासित कर दिया गया था। आखिरी दौर में लालू प्रसाद यादव से फिर उनकी नजदीकियां बढ़ीं और वे राजद में शामिल हो गए।