बाबरी मस्जिद बनाने वाला बाबर किस देश से आया था भारत, जानें- अनसुनी इतिहास….

डेस्क : अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के बीच जमीन विवाद काफी लंबे समय तक चला। अब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मस्जिद से विवाद के कारण रामलला को झोपड़ी में रहना पड़ा था।

वह मस्जिद किसने बनवाई? दशकों लंबे चले अयोध्या मामले में एक नाम बार-बार दोहराया जा रहा था- मीर बाकी। ये वही शख्स है जिसने बाबरी मस्जिद बनवाई थी। मुगल बादशाह बाबर के इस सेनापति को बाबरनामा में बाकी ताशकंद के नाम से भी जाना जाता है।

मीर बाकी को मीर के नाम से कम जाना जाता था, बल्कि उसके परिचितों ने उसे कई नाम दिये थे। इनमें बकी शघवाल, बकी बेग और बकी मिंगबाशी हैं। इतिहास के जानकारों के मुताबिक 1813-14 में अंग्रेजों ने बाकी के आगे मीर शब्द जोड़ दिया, जिसका फारसी में मतलब राजकुमार होता है।

ऐसा माना जाता है कि मीर नाम उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन ने दिया था, जो सबसे लोकप्रिय हुआ। फ्रांसिस ने मीर बाकी को यह नाम उसके वीरतापूर्ण कार्यों के उल्लेख से प्रभावित होकर दिया जो उसने बाबर के शासनकाल के दौरान किया था।

वर्ष 1526 में बाबर भारत आया और धीरे-धीरे उसका शासन अवध (अब अयोध्या) तक फैल गया। इस अवधि के दौरान, मीर बाकी बाबर के कुछ सबसे भरोसेमंद जनरलों में से एक था। मीर मूल रूप से ताशकंद के रहने वाले थे। यह ताशकंद अब उज्बेकिस्तान का एक शहर है। बाबर का चहेता होने के कारण मीर को अवध का सेनापति बना दिया गया अर्थात वह इस नगर का शासक बन गया।

ताशकंद का यह कमांडर अपनी क्रूरता के साथ-साथ वास्तुकला में विशेषज्ञता के लिए भी जाना जाता है। बाबर के नाम पर बनी बाबरी मस्जिद इतनी भव्य और खूबसूरत थी कि लोग इसे देखने के लिए दूर-दूर से आते थे। उस समय यह उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी मस्जिद थी और कई जगह इस बात का जिक्र भी है कि 1940 के दशक में इसे मस्जिद-ए-जन्मस्थान भी कहा जाता था।

विवादित ढांचे पर कई विवाद और अलग-अलग तथ्य हैं। वर्ष 1672 तक मीर या बाबर का कोई उल्लेख नहीं है। वर्ष 1574 में तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरित मानस और बाद में आईन-ए-अकबरी में बाबरी मस्जिद का कोई उल्लेख नहीं है।

दूसरी ओर, जो गुट केवल मस्जिद के अस्तित्व को मानता है, वह बाबरी मस्जिद से पहले यहां किसी भी मंदिर के अस्तित्व को पूरी तरह से खारिज करता है। वर्ष 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को विवादित भूमि पर कुछ अवशेष मिले जो मंदिरों जैसे थे। इसके बाद हिंदू संगठनों की यहां मंदिर होने की बात को और बल मिल गया।