Live-in relationship court decision

भारत में Live-in relationship पर कोर्ट का बड़ा फैसला- बिना शादी साथ रहना अपराध नहीं..

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Live-in relationship court decision : भारत दुनियाभर में समृद्ध संस्कृति, उच्च संस्कार और अपनी विशेष परंपरा के लिए जाना जाता है। ऐसे में लिव-इन रिलेशनशिप कल्चर पर देश में कई बार बहस छिड़ चुकी है। देश का एक बड़ा तबका इस कल्चर को अपनाने के लिए तैयार नहीं है। लेकिन अब इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी ने फिर से एक बार इस पर बहस छेड़ दिया है।

अदरसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप अवैध नहीं हैं और विवाह किए बिना साथ रहना किसी भी तरह से शादी की मर्यादा का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि हर नागरिक की सुरक्षा राज्य की जिम्मेदारी है और अविवाहित जोड़े अपने मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किए जा सकते हैं।

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को सुरक्षा

कोर्ट का यह आदेश लिव-इन में रहने वाली 12 महिलाओं की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन्हें परिवार या रिश्तेदारों से धमकियां मिल रही हैं। वहीं स्थानीय पुलिस उनकी सुरक्षा में ध्यान नहीं दे रही। कोर्ट ने संबंधित जिलों के पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिया कि इन महिलाओं को उनकी शांतिपूर्ण जिंदगी में दखल दिए जाने पर तुरंत सुरक्षा प्रदान की जाए।

जस्टिस विवेक कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने कहा कि भले ही लिव-इन रिलेशनशिप समाज के सभी वर्गों के लिए स्वीकार्य न हो, फिर भी इसे अवैध नहीं कहा जा सकता। इसे अपनाना करना कानून के तहत अपराध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पश्चिमी देशों में इस कॉन्सेप्ट का स्वागत किया गया है और भारत में भी यह नैतिक बहस का सामना कर रहा है। कुछ लोग इसे अनैतिक मानते हैं, वहीं कुछ इसे वैध और अपनी आजादी से जोड़ कर देखते हैं।

सरकारी वकील का तर्क

सरकारी वकील का तर्क है कि लिव-इन रिलेशनशिप को स्वीकार करने से राज्य पर निजी जीवन की निगरानी और सुरक्षा का अनुचित प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे रिश्तों की कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं होती है। इससे बच्चों की स्थिति पर भी असर पड़ सकता है।

कोर्ट का तर्क

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम 2005 के तहत किसी महिला को सुरक्षा, भरण-पोषण और अन्य अधिकार दिए गए हैं। इनमें ‘पत्नी’ शब्द ही नहीं है। इसलिए किसी भी वयस्क व्यक्ति को अपनी जीवनसाथी चुनने और शांतिपूर्ण जीवन जीने से रोकने का कोई अधिकार नहीं है। यह आदेश लिव-इन में रहने वाले नागरिकों के अधिकारों की पुष्टि करता है और राज्य की जिम्मेदारी को भी स्पष्ट करता है।

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