वो विवाद जिसको अकबर ने किया बंद और फिर औरंगजेब ने किया दुबारा चालू – धार्मिकता को ऐसे किया जाता था तार-तार

भारत में मुगलों का इतिहास कई तरह के राज और षड्यंत्रों से भरा पड़ा है। मुगल साम्राज्य में गद्दी के लिए अपनों की बलि आम था। वहीं इस साम्राज्य में कई ऐसे भी बादशाह रहे जो काफी लोकप्रिय माने जाते हैं। जैसे, बाबर, अकबर, औरंगजेब और शाहजहां, भले ही इनकी लोकप्रियता की वजह कुछ भी रही हो। बाबर को भारत में मुग़लों की नीव रखने वाला तो अकबर कोई कई विवादित रीतियों को ख़त्म करने वाला माना गया। जिसमें मुगलों की विवादित जजिया कर प्रणााली को खत्म करना भी शामिल था। अकबर ने इस विवादित कर को हटाया तो औरंगजेब ने गद्दी हथियाते ही इसको पुनः लागू करवाया।


क्या था जजिया कर? भारत में मुस्लिम शासकों का दायरा बढ़ा जजिया कर प्रणाली ने लोगों का जीवन मुश्किल कर दिया था। लोगों की पूंजी का एक हिस्सा मुस्लिम शासकों के खजाने में जाने लगा था। जजिया को इस्लाम में सुरक्षा के लिए एक शुल्क के रूप में लिया जाता था। जिसे मुस्लिम शासक गैर-मुस्लिम लोगों से वसूलते थे। जिसे लोगों ने मुस्लिम राज्य में गैर-मुस्लिमों के अपमान के तौर पर माना। और यही से शुरू हुआ विवाद। मुग़ल दौर में जजिया गैर-मुस्लिम लोगों से सालाना कर के तौर पर वसूला जाता था। इसके जरिए आने वाली रकम को मुगल दान, तनख्वाह और पेंशन बांटने के लिए करते थे। कई मुगल इसका इस्तेमाल अपने सैन्य खर्चों के लिए भी करते थे। ऐसा न कर पाने की स्थिति में मुग़ल लोगों को सख्त सजा भी देते थे। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत से ही जजिया वसूला गया हो। दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां लोगों से जजिया कर वसूला जाता था। और ये मुद्दा वैश्विक स्तर पर विवाद का कारण भी था। हालांकि भारत में इस विवादित कर की शुरुआत 11वीं सदी से हुई।

हिन्दुओं से जजिया कर की वसूली : दिल्ली में जब अलाउद्दीन खिलजी ने तख्त संभाला तो जजिया कर प्रणाली को लागू किया। और इसे एक कानून के तौर पर अनिवार्य कर दिया गया। इसके बाद सल्तनत के अधिकारियों से जबरन कर वसूलना शुरू कर दिया गया। कहा जाता है कि जब मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना, तो पूरे भारत में आक्रमण करने के लिए शाही खजाना खाली कर दिया। प्रयास विफल होने पर इसकी भरपाई के लिए उसने हिन्दुओं से जजिया कर वसूलना शुरू कर दिया। ‘


कौन वसूलते थे जजिया? कर वसूलने जैसे जिम्मेदारी बादशाहों ने साम्राज्य के महत्वपूर्ण लोगों को सौंपी थी, जिन्हे जिम्मी कहा जाता था। बताया जाता है कि शुरुआत में सिर्फ उन गैर-मुस्लिम लोगों से कर लिया जाता था, जो स्वास्थ्य को संपन्न लोग होते थे। उसके बाद शुरू हुई एकतरफा वसूली। इस कर को समाप्त करने वाला सिर्फ एक ही बादशाह हुआ ‘अकबर’।