Begusarai News : देश के आज़ादी आंदोलन से निकले नेताओं की सोच में जनता और देश सर्वोपरि थे। उस दौर में योजनाएं दूरदृष्टि और जनहित को ध्यान में रखकर बनाई जाती थीं। लेकिन आज के राजनीतिक परिदृश्य में जातिवाद, वोट और पद का स्वार्थ हावी है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मंझौल–बखरी क्षेत्र का जलजमाव है, जिसने वर्षों तक किसानों मजदूरों को राहत दी, पर आज सरकारी उपेक्षा से बदहाल है।
आजादी के बाद क्षेत्र के चौर और टाल को जलजमाव से बचाने के लिए बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह और तत्कालीन सिंचाई मंत्री रामचरित्र सिंह की निगरानी में महत्वपूर्ण जलनिकासी परियोजनाएं शुरू की गई थीं। काबर टाल, कोरैय सुजानपुर, दुनही–कनौसी, दासिन–नगरी, चकदह–कपरदह, हरखपुरा, पहसारा–चमरडीहा, रजाकपुर–सिसौनी समेत कई चौर क्षेत्रों को खेती योग्य बनाने के लिए वर्ष 1951 में योजनाएं लागू की गईं।
काबर से बगरस तक आठ किलोमीटर लंबी, 15 फीट गहरी और 20 मीटर चौड़ी नहर की खुदाई कर जलनिकासी की आधारभूत संरचना तैयार की गई थी। उस समय इस महत्वाकांक्षी योजना पर 15 लाख रुपए से अधिक खर्च हुए थे। इंजीनियरों से लेकर विभागीय अधिकारियों और कर्मियों को विशेष रूप से तैनात किया गया था। नतीजतन, यह पूरा इलाका दोफसली उत्पादन के लिए जाना जाने लगा।
आज अवैध कब्ज़ा, बंद नहर और सरकारी उदासीनता ने बिगाड़ी स्थिति : आज वही नहर और जलनिकासी मार्ग अवैध कब्ज़ों, घर–डेरों, बांध बनाकर पानी रोकने और सरकारी जमीन पर व्यक्तिगत दखल से बाधित हैं। लौछे पंचायत में तो जल के प्राकृतिक बहाव पर पथ निर्माण कर दिया गया, और आश्चर्य यह कि तकनीकी अधिकारियों ने इसे स्वीकृति भी दे दी। यह खुलेआम सरकारी कानून का उल्लंघन है।
नहर की सफाई और जल प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार विभाग और अधिकारी बेगूसराय कार्यालयों में बैठकर वेतन तो ले रहे हैं, पर जमीनी हकीकत से बेपरवाह हैं। परिणामस्वरूप सैकड़ों गांवों की हजारों एकड़ उपजाऊ जमीन हर साल पानी में डूबी रहती है। दलदली हालात के कारण किसानों की खेती चौपट हो रही है और बड़ी संख्या में लोग दिल्ली–पंजाब पलायन करने को मजबूर हैं।

