Martyr Ramprasad Singh and Ramjivan Jha : स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में बेगूसराय के मेघौल गांव की धरती भी अपने वीर सपूतों की कुर्बानी से गौरवान्वित रही है। रविवार को शहीद राधा जीवन स्मारक स्थल, मेघौल में आयोजित कार्यक्रम में स्वतंत्रता आंदोलन के दो अमर शहीद राधा प्रसाद सिंह और रामजीवन झा को उनकी शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि दी गई। लोगों ने उनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर श्रद्धा-सुमन अर्पित किया और उनके बलिदान को नमन किया।

अगस्त क्रांति और मेघौल की गूंज
अगस्त माह आते ही 1942 की अगस्त क्रांति की यादें ताजा हो उठती हैं। इसी क्रांति के दौरान 24 अगस्त 1942 को मेघौल गांव के राधा प्रसाद सिंह और रामजीवन झा ने अंग्रेजी गोलियों का सामना करते हुए अपनी जान न्योछावर कर दी थी। स्थानीय लोगों के अनुसार, स्वतंत्रता आंदोलन की अगुवाई यहां के गणेश दत्त शर्मा, कैलाशपति सिंह, रामाधीन सिंह, हर्षित नारायण सिंह, बिंदेश्वरी मिश्र, लक्ष्मीकांत झा आचार्य, रामेश्वर चौधरी और राम पदारथ सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने की थी।
21 अगस्त से शुरू इस आंदोलन की लहर में चेरियाबरियारपुर और रोसड़ा थाने पर धावा बोला गया। आंदोलनकारी रेलवे पटरियां उखाड़कर अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देने लगे। दौलतपुर कोठी पर तो उन्होंने अंग्रेज अफसर की मेम साहिबा को खादी पहनने पर मजबूर कर तिरंगा फहरा दिया।
अंग्रेजों की गोलियों के शिकार बने सपूत
इन घटनाओं से बौखलाए अंग्रेज प्रशासक सीजी एकिंस ने 24 अगस्त 1942 को फौजी पलटन के साथ मेघौल पर धावा बोला। गांव में आगजनी की गई। उसी दौरान क्रांतिकारी नेता कैलाशपति सिंह की तलाश में उनके घर पहुंचे अंग्रेज सिपाहियों ने उनके छोटे भाई राधा प्रसाद सिंह को पकड़ लिया। जानकारी देने से इनकार करने पर पहले संगीनों से घायल किया गया और बाद में गोली मारकर शहीद कर दिया गया।
वहीं गांव में लगी आग बुझा रहे दरभंगा के पोखराम निवासी व मेघौल के नाती रामजीवन झा को भी गोली मार दी गई। उन्हें गंभीर हालत में बेगूसराय लाया गया, लेकिन इलाज न मिल पाने से उन्होंने भी प्राण त्याग दिए। इस हमले में 11 वर्षीय बालिका रामवती देवी भी अंग्रेजों की गोली से घायल हुई थीं।
शहीदों की धरती पर नमन
इन सपूतों की स्मृति में ग्रामीणों ने शहीद राधा जीवन स्मारक स्थल का निर्माण कराया। यहां आज भी लोग श्रद्धा अर्पित करने आते हैं। स्वतंत्रता संग्राम के महानायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपनी पत्नी प्रभावती देवी के साथ इस स्मारक स्थल पर पहुंचे थे और इस मिट्टी को माथे से लगाकर इसकी महत्ता को स्वीकार किया था।
इसी धरती पर आकर बिहार केसरी एवं राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, समाजवादी नेता रामचरित्र प्रसाद सिंह और कॉमरेड चंद्रशेखर सिंह जैसे दिग्गजों ने भी शहीदों के चरणों में नमन किया था।
क्षेत्रवासियों का गर्व
आज भी 24 अगस्त की तारीख आते ही लोग अपने वीर सपूतों को याद कर गर्व महसूस करते हैं। शहीदों की इस गाथा को पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाया जाता है ताकि आने वाली नस्लें भी जान सकें कि आज़ादी की कीमत कितने लहू और बलिदान से चुकाई गई थी।