Leftism in Begusarai

बेगूसराय में ढहा लाल किला : वामपंथियों का 60 साल का वर्चस्व खत्म, सातों सीटों पर हार..

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Desk : कभी बिहार का ‘लेनिनग्राड’ और ‘मास्को’ कहे जाने वाले बेगूसराय में इस बार वामदलों का लाल झंडा पूरी तरह अनफ़िट साबित हुआ। बिहार विधानसभा चुनाव-2025 में जिले से एक भी वामपंथी विधायक नहीं जीत सका। 7 विधानसभा क्षेत्रों वाले बेगूसराय में 5 सीटें एनडीए और 2 सीटें राजद के खाते में गईं। इनमें 3 पर भाजपा, जबकि एक-एक सीट जदयू और लोजपा ने जीती।

लगभग 60 वर्षों से जिले की राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाने वाले वामपंथियों को जनता ने लगातार दूसरी बार नकार दिया। इससे पहले 2015 में भी जिले से एक भी वामपंथी विधायक नहीं चुना गया था।

बेगूसराय में वामपंथ का लंबा इतिहास, लेकिन अब ढलान

बेगूसराय में वामपंथियों का उदय प्रथम आम चुनाव के तुरंत बाद 1956 के उपचुनाव में हुआ, जब चंद्रशेखर सिंह उत्तर भारत के हिंदी बेल्ट से पहले कम्युनिस्ट विधायक बने। 1957 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन 1962 में तेघड़ा से शानदार वापसी करते हुए उन्होंने जिले में वामपंथ की नींव मजबूत कर दी।

इसके बाद तेघड़ा सीपीआई का लगातार गढ़ बना रहा और 2010 तक यहाँ से हमेशा सीपीआई के ही विधायक चुने जाते रहे। 2010 और 2015 में यह सीट क्रमशः भाजपा और राजद के हिस्से में गई। 2020 में सीपीआई के रामरतन सिंह ने इसे फिर पार्टी के पाले में लाकर परंपरागत गढ़ को बचाया, लेकिन 2025 में भाजपा के रजनीश कुमार ने इस लाल किले को ध्वस्त कर भगवा झंडा फहरा दिया।

तेघड़ा के बाद दूसरा बड़ा झटका—बखरी

बखरी सीट पर 1967 से वामपंथियों का प्रभाव रहा। वर्ष 2000 में राजद ने इसे सीपीआई से छीन लिया, मगर 2005 और 2020 में सीपीआई ने वापसी की। इस बार के चुनाव में लोजपा उम्मीदवार ने सीपीआई को करारी शिकस्त देकर जिले के दूसरे सबसे मजबूत वामपंथी गढ़ को भी ढहा दिया।

मटिहानी, बछवाड़ा और बेगूसराय सीटों पर भी हाशिये पर वामदल

1977 में अस्तित्व में आए मटिहानी से सीपीआई पाँच बार विधायक बना चुकी है, लेकिन 2005 के बाद यह सीट हाथ से निकल गई। इस चुनाव में महागठबंधन के अंतर्गत यह सीट राजद के खाते में गई।

बछवाड़ा से चार बार कम्युनिस्ट विधायक चुनाए जा चुके हैं, लेकिन इस बार सीपीआई के पूर्व विधायक तीसरे स्थान पर रहे और भाजपा ने यह सीट आसानी से जीत ली।

बेगूसराय विधानसभा सीट पर 1990 व 1995 में वामपंथी जीत दर्ज कर चुके थे, परंतु 2000 के बाद से वे यहां से पूरी तरह गायब हैं।

इसी तरह चेरियाबरियारपुर से 1980 में आख़िरी बार सीपीआई विधायक चुनाया गया था। साहेबपुरकमाल में वामदलों को कभी सफलता नहीं मिली।

लोकसभा में भी घटा प्रभाव

बेगूसराय लोकसभा सीट पर वामपंथियों ने 1967 और 1996 में जीत दर्ज की थी, जबकि बलिया (बेगूसराय) संसदीय क्षेत्र से 1980, 1989, 1991 और 1996 में सीपीआई उम्मीदवारों की जीत हुई। लंबे समय तक मजबूत वामपंथी प्रभाव वाले जिले में अब राजनीति का समीकरण पूरी तरह बदल चुका है।

60 साल का वर्चस्व ढलान पर

करीब छह दशक तक बेगूसराय में वामपंथियों का राजनीतिक वर्चस्व रहा, लेकिन पिछले 25 वर्षों में उनका जनाधार लगातार सिमटता गया। अब भाजपा, राजद और जदयू जैसी पार्टियां यहां प्रमुख राजनीतिक ताकत बन चुकी हैं, जबकि वामदलों की पकड़ लगभग समाप्त होती दिख रही है।

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