Construction of Check Dam in Kabar Tal

काबर टाल में चेकडैम निर्माण पर बवाल: वैज्ञानिक तथ्यों की अनदेखी या खेतों की बर्बादी की तैयारी?

बेगूसराय, बिहार — जिले के मंझौल अनुमंडल अंतर्गत काबर टाल क्षेत्र में आठ करोड़ से अधिक की लागत से चेकडैम निर्माण को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। स्थानीय किसानों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि यह योजना न केवल अवैज्ञानिक है, बल्कि क्षेत्र की दोफसली खेती, रोजगार और जीवन के स्रोत को समाप्त कर देगी। आरोप है कि इस योजना के पीछे अधिकारी क्षेत्र के भूगोल, इतिहास और सामाजिक यथार्थ से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।

जलजमाव बचाने के नाम पर खेती डुबोने की साजिश?

काबर पक्षी अभयारण्य के अधिसूचना को 39 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन आज तक इसके समुचित संरक्षण और वैज्ञानिक जल प्रबंधन की दिशा में गंभीर पहल नहीं हुई। अब जब काबर संग्रह नहर के हरसाईन क्षेत्र में चेकडैम बनाने की योजना बनाई जा रही है, तो सवाल उठ रहे हैं — क्या यह वास्तव में संरक्षण का उपाय है, या फिर सरकारी धन की बर्बादी और खेतों की तबाही?

स्थानीय लोगों का कहना है कि इससे लगभग 15,000 एकड़ उपजाऊ जमीन दलदली हो जाएगी, और समय पर बुवाई असंभव हो जाएगी। इस जलजमाव से रजौर सकरा, दुनही, नारायण पीपर, परोड़ा, विक्रमपुर, श्रीपुर, मंझौल व महेशबारा समेत दर्जनों पंचायतों की लगभग 5 लाख आबादी प्रभावित होगी।

इतिहास की अनदेखी, और चुपचाप बैठे जनप्रतिनिधि

काबर-बगरस नहर, जो कि 1951-56 के दौरान बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह और सिंचाई मंत्री रामचरित्र सिंह के नेतृत्व में बनी थी, ने इस क्षेत्र के जल निकासी और खेती को एक नई दिशा दी थी। उस समय बनाए गए सुलीस गेट और 44 फीट चौड़ी, 11 फीट गहरी नहर ने लाखों किसानों की तकदीर बदली।

आज वही नहर उपेक्षा, अतिक्रमण और अव्यवस्था की मार झेल रही है। इस नहर की सफाई और पुनःउद्धार के बजाए चेकडैम जैसी योजना पर ₹8.5 करोड़ से अधिक की राशि खर्च की जा रही है।

सवाल यह भी है कि बखरी और चेरिया बरियारपुर के विधायक तथा बेगूसराय सांसद इस योजना पर मौन क्यों हैं? क्या वे क्षेत्र की उपजाऊ भूमि और किसान हितों की रक्षा करेंगे या इस ‘विकास विरोधी योजना’ का मूक समर्थन?

प्रशासन को चाहिए स्थानीय विशेषज्ञों की सलाह

स्थानीय किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मांग है कि बेगूसराय के जिलाधिकारी इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष समीक्षा कराएं और स्थानीय भूगोल, इतिहास और कृषि व्यवस्था से जुड़े विशेषज्ञों की राय के बाद ही किसी योजना को अंतिम रूप दें।

काबर टाल केवल एक पक्षी अभयारण्य नहीं, बल्कि लाखों ग्रामीणों की आजीविका और संस्कृति का केंद्र है। जल संरक्षण और विकास के नाम पर की जा रही इस परियोजना को लेकर अगर समय रहते विचार नहीं किया गया, तो यह योजना एक पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक त्रासदी में बदल सकती है।

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