Bachwara

बछवाड़ा विधानसभा : महागठबंधन में पेंच, सीट बंटवारे को लेकर दावेदारी तेज़

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बेगूसराय | The Begusarai Desk बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट के साथ ही बेगूसराय जिले की बछवाड़ा सीट पर सियासी सरगर्मी तेज़ हो गई है। इस सीट पर महागठबंधन के भीतर फिर से पेंच फंसने की आशंका है। कांग्रेस और सीपीआई—दोनों ही दल अपनी दावेदारी मज़बूत करने में जुटे हैं।

सीट पर महागठबंधन का विवाद

पिछले चुनाव में यह सीट सीपीआई के खाते में गई थी, लेकिन कांग्रेस नेता और दिवंगत विधायक रामदेव राय के पुत्र शिवप्रकाश गरीबदास बग़ावत कर निर्दलीय खड़े हो गए। इसका नतीजा यह हुआ कि महागठबंधन के आधिकारिक उम्मीदवार अवधेश राय (सीपीआई) हार गए और भाजपा को मामूली अंतर से जीत मिल गई।

अब शिवप्रकाश गरीबदास कांग्रेस टिकट के प्रमुख दावेदार हैं। यदि कांग्रेस को सीट मिलती है तो पूर्व विधायक भुवनेश्वर राय के पुत्र शशिशेखर राय और रामदेव राय के ही दूसरे पुत्र भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं।

ऐतिहासिक झलक

बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र आज़ादी के बाद से ही राजनीतिक बदलाव का केंद्र रहा है।

  • 1952 में कांग्रेस के मिटठन चौधरी विजयी हुए।
  • 1957 और 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के रामबहादुर शर्मा ने जीत दर्ज की।
  • 1962 में कांग्रेस की गिरीश कुमारी और 1969 में भुवनेश्वर राय जीते।
  • 1972 से 1980 तक कांग्रेस के रामदेव राय लगातार तीन बार जीते।
  • 1985 में सीपीआई ने एंट्री ली और अयोध्या प्रसाद महतो जीते।
  • 1990 और 1995 में सीपीआई के अवधेश राय का दबदबा रहा।
  • 2000 में राजद के उत्तम यादव ने जीत दर्ज की।
  • 2005 फरवरी में रामदेव राय निर्दलीय जीते, फिर नवंबर में कांग्रेस टिकट पर।
  • 2010 में सीपीआई ने वापसी की और अवधेश राय ने सीट जीती।
  • 2015 में कांग्रेस के रामदेव राय विजयी रहे।
  • 2020 में महागठबंधन की फूट का खामियाज़ा भुगतना पड़ा और भाजपा ने जीत हासिल कर ली।

मौजूदा समीकरण

  • सीपीआई: सीट छोड़ने के मूड में नहीं है, इसे अपना गढ़ मानती है।
  • कांग्रेस: शिवप्रकाश गरीबदास और राय परिवार के अन्य सदस्य टिकट की रेस में हैं।
  • जोखिम: अगर कांग्रेस को सीट नहीं मिली, तो शिवप्रकाश फिर निर्दलीय उतर सकते हैं।

चुनावी मुद्दे

  • गंगा कटाव की समस्या
  • सड़क और आधारभूत ढांचे की बदहाली
  • परंपरागत वोट बैंक और जातीय समीकरण

बछवाड़ा विधानसभा की लड़ाई सिर्फ़ भाजपा बनाम महागठबंधन नहीं है, बल्कि महागठबंधन के भीतर कांग्रेस और सीपीआई के बीच सीट पर दावा असली चुनौती है। अगर महागठबंधन इस सीट पर एकजुट नहीं हुआ तो 2020 की तरह इस बार भी भाजपा इसका फायदा उठा सकती है।

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