जानें – कौन थे भारतीय इतिहास के गद्दार राजा, जिनके कारण ‘सोने की चिड़िया’ का ताज छीन गया?

General Knowledge : आज हम आपको भारतीय इतिहास के ऐसे राजाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जो गद्दार थे और उन्होंने भारत के वीर राजाओं को हमेशा हरवाने का काम किया है। उन राजाओं की गद्दारी के कारण ही हमारे देश पर पहले मुगलों और बाद में अंग्रेजों का राज हो गया था। चलिए आपको बताते हैं ऐसे ही पांच भारतीय गद्दार राजाओं के बारे में….

जयचंद

जब जब इतिहास में राजा पृथ्वीराज चौहान का नाम आता है तो उनके साथ ही देश के सबसे बड़े गद्दारों में एक राजा जयचंद का नाम भी आता है। दिल्ली का राज सिंहासन पृथ्वीराज चौहान को मिल जाने का कारण जयचंद नाराज था तो दूसरी तरफ उनकी बेटी संयोगिता को भी पृथ्वीराज चौहान भाग ले गए थे.

इसलिए राजा राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान को मारना चाहते थे।पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने के कारण जब दिल्ली पर मोहम्मद गौरी ने हमला किया तो जयचंद ने गौरी का साथ दिया था। हालांकि एक बार तो मोहम्मद गौरी से पृथ्वीराज चौहान युद्ध जीत गए थेे लेकिन दूसरी बार वो जयचंद की गद्दारी के चलते मोहम्मद गौरी से हार गए। हालांकि युद्ध जीतनेे के बाद मोहम्मद गौरी ने जयचंद को भी मार गिराया था।

राजा मान सिंह

पृथ्वीराज चौहान की तरह ही महाराणा प्रताप का नाम इतिहास के पन्नों में बड़ी ही इज्जत और गर्व के साथ लिया जाता है। लेकिन जमाना प्रताप इधर-उधर भटक रहे थे और जंगलों में देश को आजाद करवाने के लिए घास की रोटियां खा रहे थे, तब जयपुर का राजा मानसिंह मुगलों के साथ मिलकर उन्हें पराजित करने की योजना बना रहा था। जब महाराणा प्रताप और मुगलों की सेना के बीच युद्ध हुआ उस समय मानसिंह ने मुगलों का साथ तो दिया, साथ ही वो उनका सेनापति भी बना। हालांकि बाद में मानसिंह को मारकर महाराणा प्रताप ने उसे उसकी गद्दारी की सजा दे दी थी।

मीर जाफर

नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति मीर जाफर इतना बड़ा गद्दार था कि उसकी हवेली का नाम ‘नमक हराम की हवेली’ पड़ गया था। वह सेनापति से नवाब बनना चाहता था। इसलिए उसने अंग्रेजों के साथ मिलकर नवाब की पीठ में छुरा घोंप दिया। जिसके बाद नवाब की गद्दी पर वो बैठ गया और उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में अंग्रेजों को भारत में पैर पसारने का मौका दे दिया। इसीलिए भारत में अंग्रेजों के ठिकाने बढ़ने लगे और मीर जाफर को सबसे बड़ा गद्दार कहा जाने लगा।

महाराजा नरेंद्र सिंह

जब 1857 में सिखों ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति शुरू कर दी थी तब पटियाला के महाराजा नरेंद्र सिंह ने अंग्रेजों का साथ देखकर सिखों के इस विद्रोह को दबाने में बहुत साथ दिया था। महाराजा नरेंद्र सिंह ने अंग्रेजों को वह सब सुविधा दी जिससे विद्रोह को दबाया जा सके।

राजा आम्भीराज

राजा आभ्भीराज पौरव प्रदेश के राजा पर्वतेश्वर​ (जिन्हे यवन पोरस कहते थे) के प्रतिद्वन्द्वी राजा थे, जिनका राज्य झेलम के पूर्व में था। उन्हें पोरसा से जलन थी। वहीं आम्भी कायर भी थे इसी कारण उन्होंने स्वेच्छा से आलक्षेन्द्र की अधीनता स्वीकार कर ली और पोरस से गद्दारी कर उसके विरुद्ध युद्ध में आलक्षेन्द्र का साथ दिया था।