किसी भी फिल्म की शुरूआत में दिखाए जाने वाले सर्टिफिकेट का क्या होगा है मतलब?

आपने थियेटर, मल्टीप्लेक्स, मोबाईल फोन, लैपटॉप या टीवी कही भी फिल्म देखने के दौरान देखा होगा कि फिल्म के शुरू होने से पहले एक सर्टिफिकेट दिखाया जाता है। हर फिल्म के शुरुआत में दिखाया जाने वाला यह सर्टिफिकेट क़रीब 10 सेकंड के लिए टीवी स्क्रीन पर होता है। कुछ लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं वहीं कुछ के मन में यह सवाल जरूर उठता है कि आखिर यह सर्टिफिकेट क्यों दिखाया जाता है और इसका क्या मतलब है?

बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि इस सर्टिफिकेट के बिना फिल्म रिलीज नहीं हो सकती है। फिल्मों की सर्टिफिकेशन के लिए सरकार द्वारा एक बोर्ड बनाया गया है जिसका नाम है ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड।‘ इसे सेंसर बोर्ड के नाम से भी जाना जाता है। किसी भी फिल्म के बन जाने के बाद सेंसर बोर्ड के सभी सदस्य उसे देखते हैं और फिर उसे अलग-अलग कैटोगरी में रखते हुए प्रमाण पत्र देते हैं।

इस प्रमाण पत्र में श्रम के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां होती है। जैसे कि फिल्म के नाम से लेकर उसकी लंबाई तक। यदि बात करें सेंसर बोर्ड की तो फिल्म को ‘अ’,’अव’, ‘व’ और ‘एस’ की कैटगरी में सर्टिफिकेट जारी करती है। अगर फिल्म देखने के बाद बोर्ड को लगता है कि किसी आपत्तिजनक सीन को फिल्म से हटाना है तो इस बारे में भी बोर्ड लिखता है। इस सर्टिफिकेट पर फिल्म कितने रील की है यह भी लिखा होता है।

अगर किसी फिल्म की सर्टिफिकेट पर ‘अ’ लिखा हुआ होता है तो इसका मतलब है इस फिल्म को बच्चे से लेकर बूढ़े हर कोई देख सकता है। यह सर्टिफिकेट ज्यादातर धार्मिक और पारिवारिक फिल्मों के लिए जारी किया जाता है। यदि किसी फिल्म के सर्टिफिकेट पर ‘अव’ लिखा हुआ है तो इसका मतलब है 12 साल से कम उम्र के बच्चे अपने माता-पिता के साथ ही इस फिल्म को देख सकते हैं।

वहीं फिल्म के सर्टिफिकेट पर ‘व’ लिखा हुआ है तो इसका मतलब है कि इस फिल्म को वयस्क ही देख सकते हैं। जो 18 साल के ऊपर हैं वो लोग इस फिल्म को देख सकते हैं। इसके अलावा कुछ खास फिल्में ऑडियंस को ध्यान में रखकर बनाई जाती है इन के सर्टिफिकेट पर ऐसे लिखा होता है यह अमूमन डाक्टर या साइंटिस्ट के लिए बनाई गई होती है।