अब बुजुर्ग माता-पिता को बेटे-बहू मिलकर घर से बाहर नहीं निकाल सकते है? जानें – क्या है सीनियर सिटीजन एक्ट..

डेस्क : सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत लगाई गई याचिका को मुंबई के एक सेशन कोर्ट ने बुजुर्गों के लिए बने कानून खारिज कर दिया है। दरअसल ससुराल वालों पर बहू ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाकर क्रिमिनल केस दायर किया था। सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत सास-ससुर ने भी एक याचिका दायर कर बताया कि बेटा, बहू से परेशान होकर घर से चला गया।

उनकी बहू स्व-अर्जित संपत्ति यानी घर में साथ रहती है और उन्हें मेंटली और इमोशनली तौर पर प्रताड़ित भी करती है। ऐसे में कोर्ट से अपील है कि वो बहू को घर छोड़कर जाने का आदेश दें।अब कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बुजुर्ग सीनियर सिटीजन एक्ट का इस्तेमाल घरेलू हिंसा के मामले में हथियार की तरह नहीं कर सकते हैं। अब आपके मन में भी यह सवाल होगा कि आखिर सीनियर सिटीजन एक्ट क्या है? इसमें कौन-कौन से लोग आते हैं और इसका इस्तेमाल कब और कैसे किया जा सकता है? आज जानते हैं इस एक्ट से जुड़ी जानकारी- सीनियर सिटीजन की कैटेगरी में वे लोग आते हैं, जिन लोगों की उम्र 60 साल या उससे ज्यादा है। बुजुर्गों सिक्योरिटी, फाइनेंशियल सिक्योरिटी, मेंटेनेंस और प्रोटेक्शन देने के लिए सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 लागू किया गया है।

इस एक्ट के तहत ऐसे माता-पिता, दादा-दादी और बुजुर्ग जो अपना खर्चा अपनी आय यानी इनकम और संपत्ति से नहीं चला पा रहे हैं। वे अपने मेंटेनेंस का दावा इस एक्ट के तहत कर सकते हैं। इस एक्ट के तहत मेंटेनेंस का दावा माता-पिता और दादा-दादी अपने एक या एक से ज्यादा बच्चों पर कर सकते हैं, जिनमें से कोई नाबालिग नहीं होना चाहिए। उन रिश्तेदार या लोगों पर भी बुजुर्ग मेंटेनेंस का दावा कर सकते हैं जो उनकी संपत्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर संपत्ति के वारिस हैं। साथ ही बुजुर्गों ने जिन लोगों को अपनी संपत्ति दान कर दी है और गिफ्ट के तौर पर दे दी है।

इसके अंतर्गत जहां बुजुर्ग वर्तमान समय में रह रहे हों या जहां पहले रह चुके हों उस जिले में सिनियर सिटीजन एक्ट के तहत मेंटेनेंस का दावा कर सकते हैं। साथ ही जिन पर दावा करना है, वे जहां रहते हैं। राज्य में ऐसे मामलों के लिए एक स्पेशल Tribunal होता है। इसकी अध्यक्षता SDO यानी सब डिविजनल ऑफिसर की रैंक का अधिकारी करता है और इनके पास ही शिकायत दर्ज करवाई जाती है। ये Tribunal तय कर सकती है कि मेंटेनेंस के तौर पर बुजुर्गों को कितना पैसा उनके बच्चे या रिश्तेदार देंगे। सामान्यत: अधिकतम दस हजार तक देने का प्रावधान है।

आपको बता दें कि इस मामले में बहू की तरफ से पेश हुए वकील ने दलील देते हुए कहा कि घरेलू हिंसा एक्ट का कोई भी प्रोविजन सास-ससुर को इसका अधिकार नहीं देता है कि अपनी बहू से साझा घर खाली करवा सकें। शादी के बाद से अपने पति और सास-ससुर के साथ बहू एक ही घर में रहती थी। ऐसे में वह साझा घर है और वहां रहने का अधिकार उसे है।