कभी सोचा आपने आखिर सुबह-सुबह ही मुर्गा तेज़ आवाज़ में “कुकड़-कूं” करके बांग क्यों देता है?

डेस्क : अगर आप भी ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं, तो आपने मुर्गे की बांग जरूर सुनी होगी, बांग मतलब मुर्गे की आवाज जिसे इंसानी ने “कुकड़-कूं” समझा है, लेकिन क्या आपने कभी इस बात को सोचा? आखिर सुबह-सुबह ही मुर्गा बांग यानि “कुकड़-कूं क्यों देता है? अगर आपके अंदर भी जानने की उत्सुकता है तो चलिए आपको डिटेल में समझाते हैं।

दरअसल, मुर्गे या मुर्गी सुबह होने के समय को बहुत सटीक भांप लेते हैं, ये सब होता है कि उनके शरीर की बनावट और उसकी अंदरूनी खूबियों की वजह से, इसी खूबी को नाम दिया जाता है, जैविक घड़ी यानी सर्केडियन क्लॉक,, नहीं.. नही,, मुर्गे के अंदर कोई घड़ी नहीं रखी होती है। ये वैसे ही है, जैसे आपको पता नहीं चलता और आप गहरी नींद का आनंद लेते रहते हैं, तोइसी कारण से मुर्गे को सुबह होने की जानकारी हो जाती है, और वह जोर-जोर से बांग देना शुरू कर देते हैं।

अब सवाल उठता है आखिर सुबह ही क्यों बोलता है? दरअसल, सुबह के समय मुर्गे में हार्मोनल ऐक्टिविटी सबसे ज्यादा होती है, इसलिए बांग सुबह ही देते हैं, अब एक और सवाल कि मुर्गियां क्यों बांग नहीं देतीं, जबकि, जैविक घड़ी तो उनके अंदर भी होती है। तो आपको बता दे की यहां खेल शरीर की बनावट और हार्मोन का है, इसी अंतर की वजह से मुर्गियां पक-पक करती रहती हैं, शरीर के आंतरिक हार्मोन्स की वजह से सुबह सुबह मुर्गिया बांग लगाती हैं।