न्यूज डेस्क : आधार कार्ड के अभाव में किसी भी व्यक्ति को उसके वैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। यह टिप्पणी तेलंगाना हाई कोर्ट ने की है।
जस्टिस सुरेपल्ली नंदा ने अमीना बेगम की याचिका पर फैसला सुनाते हुए राजस्व विभाग को उन्हें जमीन का पट्टा पासबुक/टाइटल डीड देने का आदेश दिया है। जस्टिस सुरेपल्ली नंदा ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया है। हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि आधार कितना जरूरी है?
कहां नहीं चलेगी मनमानी?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने साल 2018 के अपने फैसले में कहा था कि आधार कार्ड संवैधानिक है लेकिन इसे हर जगह अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि आधार कार्ड न होने पर भी बैंक खाता खोला जा सकता है। मोबाइल नंबर मिल सकता है। आधार को लेकर निजी कंपनियां किसी भी तरह की मनमानी नहीं कर सकेंगी।
सुप्रीम कोर्ट ने आधार की धारा 57 को खत्म कर दिया है। स्कूल में बच्चे के दाखिले के समय आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं किया जा सकता। पहले भी स्कूल आधार मांगते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को सुरक्षित माना था और यह भी कहा था कि आधार पर हमला संविधान के खिलाफ है। सीबीएसई, नीट, यूजीसी जैसी संस्थाएं किसी भी परीक्षा के लिए आधार को अनिवार्य नहीं कर सकतीं।
कहां जरूरी है आधार?
सुप्रीम कोर्ट ने इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने के लिए आधार को अनिवार्य घोषित कर दिया है। पैन बनवाने के लिए भी आधार जरूरी है। आधार के बिना पैन के लिए आवेदन नहीं किया जा सकता। सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार को जरूरी बताया गया है यानी जब आपको सरकारी छूट चाहिए तो आधार जरूरी हो जाएगा। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल थे।