Sticky Rice : बिहार में 600 रुपये किलो बिकता है ये चावल, जानें- खासियत….
Sticky Rice Farming : बुद्ध की धरती बिहार के बोधगया में भारी संख्या में विदेशी बौद्ध भिक्षु निवास करते हैं। गया में रहने वाले विदेशी बौद्ध भिक्षु यहां रहकर पढ़ाई लिखाई के साथ खेती भी करते हैं। यह उनकी एक्टिविटीज में शामिल है। बौद्ध भिक्षु धान की खेती भी कुछ सालों से करने लगे हैं।
इस धान के चावल की कीमत बिहार में मिलने वाली चावलों से काफी अधिक है। इसका नाम स्टिकी राइस है। इसे लाओस से मांगा कर थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया जैसे देशों से आए बौद्ध भिक्षु खेती करते नजर आते हैं आइए इस चावल की खासियत को जानते हैं।
इस चावल को चिपचिपा चावल भी कहा जाता है। बोधगया के होटलों में यह खाने के लिए उपलब्ध नहीं है। इसके लिए थाईलैंड से चिपचिपा चावल आयात किया जाता है। यह चिपचिपा चावल बोधगया तक पहुंचते-पहुंचते काफी महंगा हो जाता है क्योंकि यह थाईलैंड से आयात किया जाता है।
इसी के चलते बौद्ध भिक्षु वट लाओस मंदिर के पास एक बीघे जमीन लीज पर लेकर चावल की खेती कर रहे हैं। लाओस या थाईलैंड में ग्लूटिनस चावल की कीमत 70-80 रुपये प्रति किलो है। वहीं, बोधगया में यह 500-600 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।
बांस के बर्तन में बनता है ये चावल
वट लाओस मंदिर के केयर टेकर संजय कुमार ने बताया कि विदेशी बौद्ध भिक्षुओं ने करीब एक बीघे जमीन में धान लगाया है। इसमें थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया के बौद्ध भिक्षु शामिल हैं। यह खेती गया के रामपुर गांव में लीज पर ली गयी एक बीघे जमीन पर की जा रही है। यह चावल बहुत चिपचिपा होता है। इसी वजह से इसे बांस के बर्तन में रखकर भाप से पकाया जाता है।
वैसे तो इस चावल की खेती यहां पिछले 4 साल से हो रही है, लेकिन पिछले साल बारिश की कमी के कारण अच्छी पैदावार नहीं हुई थी। हालांकि कुछ साल पहले इसकी अच्छी खेती होती थी। यह एक तरह का मीठा चावल होता है जिसे भाप में पकाकर बनाया जाता है।