गजब हो गया! बिहार में चपरासी बन गया डाक्टर, किया आखों का इलाज, फिर आगे जो हुआ..

न्यूज़ डेस्क: अंधेर नगरी चौपट राजा अपने यह कहावत कई बार सुनी होगी। इस कहानी को बिहार स्वास्थ्य विभाग चरितार्थ कर रही है। चिकित्सा से संबंधी लबफवारी पर सरकार की नजर नहीं है। आए दिन सरकारी अस्पतालों में धांधली या फर्जीवाड़े का केस सामने आता है लेकिन इस पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती है, जिससे अब अस्पताल के चिकित्सकों सहित चपरासी तक का मन बढ़ गया है।

भागलपुर सदर अस्पताल से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। दरअसल, सदर अस्पताल में नेत्र रोग विभाग में प्रभारी और टेक्नीशियन के अनुपस्थिति में चपरासी ने मरीजों के आंख की इलाज की। यह एक बड़ी चूक है खुदा न खस्ता मरीज की आंख की जांच में चूक हुई होगी तो इसका जिम्मेवार कोन होगा। बीते सोमवार को 10 मरीजों का मोतियाबिंद का ऑपरेशन भी होना था, जो कि नहीं हुआ। वहीं अस्पताल प्रभारी इस बात से अवगत तक नहीं है, इसके विभागीय प्रभारी डा. सत्यजीत गुप्ता फोन तक उठाना मुनासिफ नहीं समते। वहीं सिविल सर्जन डा. उमेश शर्मा ने बयान दिया कि यदि टेक्नीशियन के ना होने पर विभाग बंद रखना चाहिए था।

सदर अस्पताल में यह सब आम बात हो गया है। परंतु अस्पताल में सुचारू रूप से सब चले इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते हैं। बीते सोमवार को भी इसी प्रकार हुआ। नेत्र विभाग में मरीजों की काफी भीड़ थी, इनमें मोतियाबिंद से सबंदित आपरेशन करवाने के लिए मरीज भी आये थे। सहायक टेक्नीशियन को कहीं और भेज दिया गया था। ऐसे में चपरासी ने करीब 40-50 मरीजों का इलाज किया। यह बेहद चिंताजनक बात है। ऐसे में सरकारी अस्पतालों से लोगों का विश्वास उठ जाएगा।

इस विभाग में कलीमुर्र रहमान, सतोष और चक्रधर नाम के तीन टेक्नीशियन नियुक्त हैं।लेकिन इन्हें सुलतानगंज के एक महादलित टोला में लगे एक नेत्र जांच शिविर में जाने को कहा गया। वहीं जरीब 10 मरीज मोतियाबिंद का आपरेशन करवाने के लिए तैयार थे उनका भी ऑपरेशन रोक दिया गया। मरीजों का कहना है कि सोमवार को आपरेशन हेतु समय दिया गया था। और यहां आएं तो ना डॉक्टर थे और नाही टेक्नीशियन थे।

इस सबंध में सिविल सर्जन डा. उमेश शर्मा का कहना है कि टेक्नीशियन की अनुपस्थिति में विभाग को बंद रखना चाहिए। चपरासी के द्वारा मरीजों की जांच होना लापरवाही है। इस घटना में जिम्मेवार डॉक्टर से सफाई मंगा गया। वहीं, बचते हुए डा. राजू ने बताया कि में सिविल सर्जन के साथ आउटडोर विभाग में चला गया था। नेत्र रोग विभाग में गया तो था परंतु यह जानकारी नहीं है कि चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी ने आंख की जांच की।