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Bhumihar-Brahmin Controversy : विवाद पर बहस-सियासी हलचल, फैसला नीतीश सरकार पर

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Bhumihar-Brahmin Controversy : बिहार की राजनीति में एक बार फिर जाति और पहचान का सवाल केंद्र में है. समाज में एक बार फिर जातीय पहचान को लेकर बहस तेज हो गई है. इस बार बहस का मुद्दा है- भूमिहार के नाम के आगे ब्राह्मण जोड़ा जाए या फिर नहीं? इस बार यह सवाल बस नाम का नहीं रह गया है बल्कि सरकारी रिकार्ड, जमीन के कागजात और सरकारी पहचान से जुड़ गया है. यह मांग अब सिर्फ सामाजिक विमर्श तक सीमित नहीं रही है बल्कि सीधे सरकार और सवर्ण आयोग के फैसले से जुड़ गई है.

Bhumihar-Brahmin Controversy: क्यूं है विवाद?

विवाद की शुरुआत तब हुई जब बिहार के सवर्ण वर्ग में आने वाले भूमिहार समाज के संगठनों ने मांग उठाई कि सरकारी दस्तावेजों में उनकी जाति को भूमिहार ब्राह्मण लिखा जाए. दरअसल भूमिहार संगठनों का कहना है कि ऐतिहासिक और सरकारी रिकॉर्ड में उनकी जाति ‘भूमिहार-ब्राह्नण’के रुप में दर्ज हो रही है. इस बहस को धार तब मिली जब हालिया दस्तावेजों और 2023 की जाति आधारित गणना में केवल भूमिहार लिखे जाने से भ्रम पैदा हो रहा है, जिसका असर जमीन के मालिकाना हक और राजस्व रिकॉर्ड तक पर पड़ सकता है.

उनका तर्क है कि ऐतिहासिक रिकार्ड खासकर 1931 की जनगणना में उनकी जाति भूमिहार-ब्राह्मण के रुप में दर्ज है. इसके अलावा पुराने भूमि राजस्व अभिलेखों और खतियानों में भी यहीं नाम इस्तेमाल होता रहा है. ऐसे में हाल के वर्षों में केवल भूमिहार लिखे जाने से कानूनी और प्रशासनिक उलझनें पैदा हो रही है.

Bhumihar-brahmin controversy: आयोग पहुंचा मामला

रिपोर्ट्स के अनुसार इसी साल अक्तूबर में बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने राज्य सवर्ण आयोग से मार्गदर्शन मांगा कि सरकारी दस्तावेजों में समुदाय को भूमिहार लिखा जाए या भूमिहार ब्राह्मण?इस मांग पर विचार के लिए मामला पहले राज्य सवर्ण आयोग पहुंचा. आयोग में भी इसे लेकर तस्वीर साफ नहीं हो सकी.

इस मुद्दे पर बिहार राज्य सवर्ण आयोग में एक महीने के अंदर तीन बैठकें हो चुकी हैं लेकिन अब तक सर्वसम्मति नहीं बन पाई है. आयोग के सदस्यों का अलग-अलग मानना है. कुछ सदस्यों का मानना है कि भूमिहार के आगे ब्राह्मण शब्द जोड़ना ना उचित है ना जरुरी. वहीं कुछ सदस्यों का तर्क है कि 1931 की जनगणना और पुराने खातियान में यह नाम पहले से मौजूद है. यानि कुछ सदस्य इसे प्रशासनिक और ऐतिहासिक रुप से सही ठहराते हैं.

इस मांग पर विचार के लिए मामला राज्य सवर्ण आयोग तक पहुंचा, लेकिन यहां भी तस्वीर साफ नहीं हो सकी। बीते एक महीने में आयोग की तीन बैठकें हुईं, मगर किसी एक राय पर सहमति नहीं बन पाई। दावा ये है कि कुछ सदस्य कुछ सदस्य भूमिहार के साथ भूमिहार ब्राह्मण लिखने पर राजी नहीं हैं.

सवर्ण आयोग के चेयरमैन महाचंद्र प्रसाद सिंह का कहना है कि इस बात को लेकर कोई खास विवाद नहीं है और हर समाज में ऐसी परिस्थिति आती है. कुछ सदस्यों का कहना है कि कौन सी जाति किस नाम से खुद को पुकारना चाहती है इस पर बहस नहीं होना चाहिए, बल्कि ये विशेषाधिकार का मामला है.

सरकार के पाले में गेंद

अब यह पूरा मामला सीधे सरकार के अंदर आ गया है. आयोग में एक राय ना बनने के बाद अब सरकार को ही अंतिम फैसला लेना है.सामान्य प्रशासन विभाग पहले ही आयोग से मार्गदर्शन मांग चुका है कि सरकारी रिकार्ड में जाति का नाम भूमिहार रखा जाए या भूमिहार ब्राह्मण. हालांकि इस बात को लेकर भूमिहार और ब्राह्मणों के बीच किसी तरह का विवाद नहीं है. ब्राह्मण और भूमिहार दोनों ही समाज का कहना है कि इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है.

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