कभी बेगूसराय की लाल मिर्च की विदेशों में थी मांग, अब इस वजह से किसानों ने छोड़ दी खेती

डेस्क : कभी अपने जिले में इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती थी। अंग्रेजों और नीलकोठियों के मालिकों ने इसकी खूब खेती कराती। उत्तर बिहार की नीलकोठी का क्षेत्र लाल मिर्च उत्पादन का बड़ा केंद्र था। कभी बिहार देश ही नहीं विदेशों को मिर्ची खिलाता था। मुझे 1970 का दशक याद है जब कोलंबो खुलने का इंतजार बेगूसराय जिले के मिर्च व्यवसायियों को रहता था।

कभी बेगूसराय, दलसिंहसराय और समस्तीपुर का क्षेत्र मिर्च की बड़ी मंडी थी आज आंध्रप्रदेश का गुंटूर जिला एशिया का सबसे बड़ा मिर्ची मंडी है। आज पूरे इंडिया का 40 % मिर्ची आंध्र प्रदेश सप्लाय करता है। इसमें जो सबसे खूबसूरत नस्ल या किस्म है 334,तेजा और सन्नाम। लेकिन 1980-90 से पहले इन सारी मिर्चियों का जो बाप हुआ करता था वो बिहार से आता था, उस मिर्ची का इंटरनेशनल नाम आज भी BR मिर्ची है। यह बिहार के बेगूसराय और समस्तीपुर क्षेत्र की उपज होती थी।

अंग्रेजों की नीलकोठी के मालिक नील के अलावे लाल मिर्च और उसके साथ अंडी की उपज करवाते थे। भारतीय किसानों ने इसका अनुसरण किया। मुझे लगता है कि बेगूसराय जिले के मटिहानी और बछवाड़ा क्षेत्र में मिर्च और अंडी की फसल 1990 तक देखा गया। अचानक वे अंडी मिर्ची वाले खेत गायब हो गए। अमूमन भादो महीने में रोपनी कराने वाले खेतों को गुआ (सड़े गोबर ) से भर दिया जाता।

कार्तिक के अंत या फिर अगहन से अगात फसल बाजार में आ जाती और चैत तक सारे मिर्च पक जाते जिन्हें किसानों द्वारा तोड़कर खलिहान लाया जाता। कई बार बचपन में मिर्च की कुड़ियों को खलिहान में गिनती करते यादगारी ताजा है।जहां से व्यापारी मंडियों मे पहुंचाते। मिर्च सुखाने और पैकिंग का अपना महत्व था। चैत के बाद अंडी पकना शुरू होता और बीज छिटकने के बाद किसानों द्वारा उसका घौंदा काटकर घर लाया जाता जिनके बीज धूप में चटकता छिटकता बिखरता रहता। शाम को उसे चुनकर जमा किया जाता।