जयमंगला मंदिर को पक्षी विहार से अलग करने की प्रक्रिया शुरू, डीएम को भेजा गया प्रस्ताव..

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Jayamangala Temple : 52 शक्तिपीठों में शामिल जयमंगला मंदिर और जयमंगलागढ़ का विकास अब संभव होगा। मंदिर परिसर को कावर झील पक्षी विहार की अधिसूचित सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके लिए प्रस्ताव जिलाधिकारी को भेजा गया है। जल्द ही इस पर आधिकारिक घोषणा होगी।

कुछ समय पहले मंदिर प्रबंधन और वन विभाग के बीच मालिकाना हक को लेकर विवाद हुआ था। मामला न्यायालय तक पहुंचा। उच्चस्तरीय हस्तक्षेप के बाद मंदिर के क्षतिग्रस्त हिस्से के बाहर कॉरिडोर बनाया जा रहा है। गर्भगृह के ऊपर आकर्षक गुंबद भी लगाया जाएगा। कावर झील पक्षी विहार के सीमांकन का काम तेजी से चल रहा है। अनुमंडलाधिकारी मंझौल प्रमोद कुमार इसकी निगरानी कर रहे हैं।

जदयू के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष चितरंजन प्रसाद सिंह ने बताया कि वे लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इस मुद्दे पर बात कर रहे थे। 29 नवंबर को विधानसभा सत्र के दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर यह मांग रखी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री ने दिसंबर में हवाई सर्वे किया। उन्होंने प्रगति यात्रा के दौरान कावर झील पक्षी विहार और जयमंगला मंदिर का हवाई निरीक्षण किया। मंझौल अनुमंडलीय अस्पताल परिसर में पक्षी विहार का डेमो भी दिखाया गया। जिलाधिकारी और अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को पूरी जानकारी दी।

जिला शांति समिति की 29 मार्च को हुई बैठक में बताया गया कि मंदिर की जमीन को पक्षी विहार के सीमांकन से अलग किया गया है। जिलाधिकारी ने जानकारी दी कि जयमंगलागढ़ की जमीन को पक्षी विहार आश्रयणी क्षेत्र से बाहर किया जा रहा है।

पक्षी विहार की अधिसूचना के कारण मंदिर परिसर में विकास कार्य रुके हुए थे। सरकारी राशि खर्च होने के बाद भी अनुमति नहीं मिलती थी। अब मंदिर की जमीन को गजट से बाहर किया जाएगा। इससे विकास कार्य तेजी से होंगे। श्रद्धालुओं के लिए पेयजल, स्नानागार और शौचालय जैसी सुविधाएं नहीं हैं। बैठने और खाने की भी कोई व्यवस्था नहीं है। शनिवार, मंगलवार और नवरात्र में मिथिला और बिहार भर से श्रद्धालु यहां आते हैं। माता जयमंगला से मन्नत मांगने वालों की आस्था जुड़ी है।

अनुमंडलाधिकारी प्रमोद कुमार ने बताया कि मंदिर की जमीन को डिनोटिफाई करने का प्रस्ताव जिलाधिकारी को भेजा गया है। जल्द ही कार्रवाई पूरी होगी। स्थानीय स्तर पर लगातार काम हो रहा है। अभी डेटा वाइज काम चल रहा है। जल्द ही सबकुछ ठीक होने की उम्मीद है।

साल 1989 में तत्कालीन जिलाधिकारी की अनुशंसा पर बिहार सरकार ने 6311 हेक्टेयर क्षेत्र को बर्ड सेंचुरी घोषित किया था। लेकिन झील के विकास की बजाय अब तक उसका क्षरण ही हुआ है। लोगों को अब तक कावर झील पक्षी विहार के सीमांकन की जानकारी नहीं मिल पाई है। भूगोलविदों के शोध में झील के अस्तित्व पर संकट बताया गया है। किसानों, मछुआरों, जनप्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिकारियों ने प्रयास किए, लेकिन अब तक ठोस परिणाम नहीं मिले। अब वर्तमान जिलाधिकारी के कार्यकाल में समाधान की उम्मीद जगी है।

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सुमन सौरब thebegusarai.in वेबसाइट में मार्च 2020 से कार्यरत हैं। लगभग 5 साल से डिजिटल मीडिया में काम कर रहे हैं। बिहार के बेगूसराय जिले के रहने वाले हैं। इन्होंने LNMU से स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। अपने करियर में लगभग सभी विषयों (राजनीति, क्राइम, देश- विदेश, शिक्षा, ऑटो, बिजनेस, क्रिकेट, लाइफस्टाइल, मनोरंजन आदि) पर लेखन का अनुभव रखते हैं। thebegusarai.in पर सबसे पहले और सबसे सटीक खबरें प्रकाशित हों और सही तथ्यों के साथ पाठकों तक पहुंचें, इसी उद्देश्य के साथ सतत लेखन जारी है।
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