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बेगूसराय सदर अस्पताल में ‘जाति’ देखकर मिलता इलाज, ‘पहनावे’ देखकर दवाई, पढ़िए- सिस्टम का काला सच…

Begusarai Sadar Hospital : बेगूसराय सदर अस्पताल अपनी बदहाली को लेकर हमेशा चर्चा में रहता है। इस अस्पताल की दुर्दशा ऐसी है कि यहां इलाज कराना मरीजों और मरीज के परिजनों के लिए जंग लड़ने जैसा है। सदर अस्पताल में बदइंतजामी के अंबार की पोल तब खुली जब एक पत्रकार आम आदमी की तरह लाइन में लगकर इलाज करवाने के लिए बेगूसराय सदर अस्पताल पंहुचा।

अपनी आपबीती साझा करते हुए पत्रकार ने बताया कि

शनिवार (14 सितंबर) की सुबह बेगूसराय सदर अस्पताल जाना हुआ। डिजिटल रजिस्ट्रेशन कर के जब अंदर गया तो माहौल और व्यवस्था देखकर कर लगा कि विगत कुछ वर्षों में अस्पताल का अच्छा विकास हुआ है। सुविधा तो सरकार देती है लेकिन वो लोगों तक नहीं पहुंच पाती है।

आगे उन्होंने बताया कि

जब पापा के साथ डॉक्टर चैंबर में गया। इधर पापा से डॉक्टर बात कर रहे थे और मैं पीछे खड़ा था। साइड में एक नर्स और एक लड़का..कंप्यूटर पर डिजिटल पुर्जा बना रहे थे। इस पुर्जा में, पापा का नाम गलत लिखा उन्होंने, BP, Pulse, Weight.. सब अपने मन से लिख दिया। नाम सही करने मैने जब बोला तो, नर्स ने कहा इतना कोई देखता नही। मैने कहा ठीक है।

जब पत्रकार ने महिला नर्स से पूछा बीपी, पल्स और वजन बिना पेशेंट (पापा) का चेक किए अपने मन से कैसे लिख दिया आपने? उन्होंने जवाब दिया की अरे हम दिनभर में हजार लोग देखते हैं, हमें आइडिया रहता है सब। मैने बोला ठीक है, लिखित में दीजिए।

मैने बस अपना फोन निकाला ही था, की उन्होंने जल्दी से पापा का बीपी, वजन, पल्स सब चेक कर दिया। और जानते हैं? पुर्जा पर उन्होंने जो अपने मन से लिख था, चेक करने के बाद असल डाटा अलग था। मैने बस उनको देखा, नर्स घबराहट में बाहर चली गई। शायद उनको अंदाजा था आम लोगों के सेहत और जीवन के साथ मजाक करना उनको मंहगा पड़ सकता है।

मैं जैसे ही चैंबर से बाहर आया, वो बाहर मेरा ही इंतजार कर रही थी। उन्होंने मुझसे घबराहट में पूछा “क्या नाम हुआ आपका? क्या करने हैं आप? पत्रकार हैं. कहां रहते हैं? दिल्ली, पटना, बेगूसराय यहां कहां रहते हैं? ……अरे उधर तो सब पासवान रहता है। हम बोले हां पासवान हैं हम.. ते गलत इलाज करभो?

फिर उन्होंने बोला नहीं..सरनेम में राय है..आप भूमिहार ही हैं न? हम बोले- आएं? E काहे पूछ रहे हैं? मैने बोला- हां काहे दीदी? उन्होंने बोला- अरे आप तो आते जाते रहते हैं। इतना छोटा सा बात है, इसको आगे मत ले जाइयेगा। हम बोले देखते है.. !! फिर उन्होंने बोला, हम बेटी के लिए लड़का देख रहे हैं….

पत्रकार ने बताया कि डॉक्टर से दिखाने के बाद, जब नीचे दवाई लेने गया तो वहां लाइन लगी थी। लाइन में खड़ा काफी समय हो गया, लेकिन पापा का नंबर नही आ रहा था। आगे जाकर देखा तो पता चला पीछे वाले गेट से कुछ बाबू साहब आते हैं और अपना पुर्जा दे देते हैं, उनको पहले दवाई मिल जाता है। जो मरीज लाइन में खड़ा है, उसका कोई वैल्यू नही।

वहां जब मैने प्रेम से बोला की- हमलोग लाइन में आपका और बाबू साहब सब का फिल्म देखने के लिए खड़े हैं? तो मेडिकल के अंदर से आवाज आया की- आप ज्यादा अंग्रेजी मत पढ़िए, सब नंबर से ही हो रहा है। फिर हम बोले- मने हम ही आनहर छियई? अंग्रेजी हिंदी सब में अभी तोरा हम समझाय देवऊ की केना लाइन में लगल लोग के पहले दवाई दियल जाय छै, कोई बाबू साहेब नय बचैतऊ।

पत्रकार ने बताया की

एक लड़का करीब 25 साल का होगा, अपनी पत्नी के साथ परेशान होकर एक काउंटर पर इलाज का गुहार लगा रहा था, ये कहते हुए की मुझे उस काउंटर वाले ने आपके पास ही भेजा है, और अब आप कह रहे यहां नही होगा। तो मैं क्या करूं? मेरी पत्नी बेहोश हो जाएगी……।

पत्रकार ने कहा

जब अस्पताल के अंदर आया था तब लगा सरकारी काम अब बेहतर तरीके और व्यवस्था के साथ हो रहा है। लेकिन जब अंदर 2 घंटा रहकर आया तब असलियत पता चला कि आज भी सरकारी काम ठंडे बस्ते में है, और इसका जिम्मेदार जितना सरकार है उससे ज्यादा हम और आप हैं। सारी फैसिलिटी, व्यवस्था..होने के बाद भी..आज भी जाति देखकर इलाज मिलता है, पहनावे देखकर दवाई मिलता है।

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