Begusarai News : बेगूसराय की सात विधानसभा सीटों पर इस बार मुकाबला सिर्फ एनडीए, महागठबंधन और जनसुराज के बीच नहीं रहा, बल्कि सबसे बड़ी चुनौती उम्मीदवारों के लिए अपने ही दल और गठबंधन के अंदरूनी विरोध से रही। कई नेताओं ने टिकट न मिलने पर बागावती तेवर दिखाते हुए खुद को मैदान में उतार दिया। कुछ ने वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप पर नामांकन वापस ले लिया, पर कई अंत तक डटे रहे और अपने ही गठबंधन के उम्मीदवारों को हराने के लिए पूरी ताकत झोंकते रहे।
बखरी और तेघड़ा में भाजपा के बागी उम्मीदवारों ने सांसद गिरिराज सिंह और पार्टी नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद नामांकन वापस ले लिया। वहीं साहेबपुरकमाल में जदयू के अमर कुमार सिंह ने नेतृत्व की अपील ठुकराते हुए एनडीए के लोजपा प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ना जारी रखा।
चेरियां बरियारपुर में राजद के रामसखा महतो अंत तक राजद प्रत्याशी के विरुद्ध सक्रिय रहे। बखरी में लोजपा उम्मीदवार, चेरियां बरियारपुर में जदयू उम्मीदवार और बेगूसराय सीट पर भाजपा के सीटिंग विधायक को अपने ही कार्यकर्ताओं और नेताओं की नाराज़गी झेलनी पड़ी। चर्चा यह तक रही कि भीतरघात ने भाजपा विधायक को हार के करीब पहुँचा दिया।
मटिहानी में महागठबंधन के अंदर संघर्ष खुलकर सामने आया। राजद प्रत्याशी के खिलाफ गठबंधन सहयोगी सीपीआई में घमासान मचा रहा। सीपीआई के एक पूर्व सांसद और एक पूर्व विधायक के सोशल मीडिया पोस्ट चुनाव में चर्चा का विषय बने। बछवाड़ा में भाजपा के उम्मीदवार पर भाजपा के ही कुछ नेताओं की आलोचना सोशल मीडिया पर वायरल होती रही।
साहेबपुरकमाल और बखरी में जनसुराज के असंतुष्ट उम्मीदवारों ने अपने ही संगठन को चुनौती दी। मटिहानी में भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं के महागठबंधन उम्मीदवार का खुला समर्थन करने की चर्चा बनी रही। तेघड़ा में भाजपा के उम्मीदवार के खिलाफ जदयू और भाजपा के असंतुष्ट कार्यकर्ताओं के भीतरघात की बातें आम रहीं।
कुल मिलाकर, बेगूसराय में इस चुनाव की सबसे बड़ी कहानी थी—गठबन्धन से बड़ी ‘भितरघात की राजनीति’।

