बेगूसराय। मंझौल अनुमंडल क्षेत्र का काबर टाल इलाका पिछले चार दशकों से किसानों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बना हुआ है। स्थानीय किसानों का आरोप है कि सरकार की नीतियों ने उन्हें खेती, पशुपालन और मछली पालन जैसे पारंपरिक जीविकोपार्जन से दूर कर दिया है।
किसानों का कहना है कि यह समस्या 1980 के दशक में शुरू हुई।
वर्ष 1986 के जिला गजट और 1989 के राज्य सरकार के गजट से 6311 हेक्टेयर भूमि को पक्षी आश्रयणी घोषित कर दिया गया।
बिना वास्तविक स्थिति को समझे इस अधिसूचना ने हजारों किसानों की ज़िंदगी संकट में डाल दी।
किसानों ने कोर्ट से लेकर सड़क तक इस फैसले को चुनौती दी, लेकिन 34 साल बीत जाने के बाद भी हल नहीं निकला। बीच-बीच में किसानों से दस्तावेज़ और जमीन के दावे लिए गए, सीमांकन और पुनर्निर्धारण की बातें हुईं, लेकिन मामला आज भी अधर में लटका है।
अधिसूचित भूमि में कई विसंगतियाँ हैं —
- गाँव, स्कूल और आबादी वाले हिस्से को भी अधिसूचित क्षेत्र में शामिल कर दिया गया।
- दलदली भूमि और वास्तविक पक्षी आवास का कोई स्पष्ट निर्धारण नहीं किया गया।
- किसानों के साथ छलावा कर केवल “कागज़ी घोड़े” दौड़ाए जाते रहे।
2013 में एक तत्कालीन जिलाधिकारी ने अधिसूचना की विसंगतियों को दूर किए बिना रजिस्ट्री पर रोक लगा दी।
तब से अब तक किसानों की ज़मीन की खरीद-बिक्री बंद है।
अब वर्ष 2024 के सर्वे में भी वही हालात दोहराए जा रहे हैं। वन प्रमंडल बेगूसराय के अधिकारी बिना विसंगतियाँ दूर किए अधिसूचित भूमि पर सुनवाई कर रहे हैं।
यहाँ तक कि मंझौल के एसडीएम ने किसानों की जमीन को सर्वे में वन विभाग के नाम दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए, जिससे किसानों का आक्रोश और बढ़ गया है।
किसानों का कहना है कि—
“40 सालों से काबर क्षेत्र के किसान, मजदूर और मछुआरे पीढ़ी दर पीढ़ी बर्बादी झेल रहे हैं। सरकार और प्रशासन सिर्फ चुनावी वादे करता है, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता।”
किसानों ने अब बेगूसराय के सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से भी गुहार लगाई है कि वे इस गंभीर समस्या के समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाएँ।
हालाँकि, मामला अभी भी ज्यों का त्यों अटका हुआ है।