Kabar-Bagras Canal

काबर-बगरस नहर बदहाल, 16 गांवों के किसानों पर संकट ; रबी की बुआई पर भी खतरा..

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Kabar-Bagras Canal : बेगूसराय जिले के मंझौल और बखरी विधानसभा क्षेत्र में अवस्थित काबर टाल से जलनिकासी की जीवनरेखा माने जाने वाली काबर–बगरस नहर आज बदहाली की कगार पर है। कभी किसानों की किस्मत संवारने वाली यह नहर अब जलकुंभी, अतिक्रमण और अवैध घेराबंदी से जाम होकर बेकार साबित हो रही है। नतीजा करीब एक लाख से अधिक की आबादी जलजमाव की त्रासदी झेलने को मजबूर है।

ऐतिहासिक नहर अब उपेक्षा की शिकार

आजादी के बाद बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह और तत्कालीन सिंचाई मंत्री रामचरित्र सिंह ने इंजीनियरों की सिफारिश पर प्रथम पंचवर्षीय योजना में इस नहर के निर्माण को स्वीकृति दी थी। वर्ष 1952 से 1956 के बीच बनी यह नहर आठ किलोमीटर लंबी, 40 फीट चौड़ी और 15 फीट गहरी थी। तत्कालीन समय में इस पर 14 लाख 55 हजार रुपये से अधिक खर्च हुए थे, जो आज के हिसाब से करोड़ों में है।

नहर बनने के बाद काबर टाल इलाके में रैंचा, ईख, गेहूं, धान और दलहन की पैदावार ने नई उंचाइयां छुईं। हजारों एकड़ जमीन उपजाऊ हुई और क्षेत्र की गरीबी व भूखमरी लगभग समाप्त हो गई। बरसात के बाद नहर खोल दिए जाने से अतिरिक्त पानी बूढ़ी गंडक में गिर जाता था और किसान समय पर खेती कर पाते थे।

जगह-जगह अवरोध, मछुआरों की घेराबंदी से जलप्रवाह ठप : लेकिन आज यही नहर जलनिकासी के अपने मूल उद्देश्य से कोसों दूर पहुंच चुकी है। नहर के अंदर जलकुंभी का अंबार लगा है। कई स्थानों पर ग्रामीणों द्वारा अतिक्रमण कर बहाव को रोक दिया गया है। काबर जीरो प्वाइंट से बगरस तक कई जगह मछुआरों ने ‘मछली मारने’ के नाम पर पूरी नहर की घेराबंदी कर दी है, जिससे जलप्रवाह पूरी तरह रुक गया है।

बगरस स्थित बूढ़ी गंडक के मुहाने पर बना सुलिस गेट भी वर्षों से देखरेख के अभाव में बेकार साबित हो रहा है। जलनिस्सरण विभाग के अधिकारी-कर्मचारी कागजी कार्रवाई तक सीमित हैं, जबकि हजारों एकड़ भूमि जलमग्न है और खेती योग्य नहीं रह गई है।

16 गांव प्रभावित, किसान हुए पलायन को मजबूर : नहर की बदहाली का सबसे बड़ा खामियाज़ा आसपास के लगभग 16 गांवों के किसानों और मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है। खेत वर्षों से जलजमाव में डूबे रहने से रबी की समय पर बुआई असंभव होती जा रही है। किसान बताते हैं- ‘का बरसा, जब कृषि सुखाने’ यह कहावत यहां आज पूरी तरह चरितार्थ हो रही है।

खेती चौपट होने से मजदूर, छोटे व्यापारी और किसान पलायन को मजबूर हैं। वहीं क्षेत्रीय नेताओं और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता पर ग्रामीणों में नाराज़गी बढ़ती जा रही है।

20 नवंबर को प्रशासन ने खोला नहर, पर अवरोध जस के तस : पूर्व मंत्री मंजू वर्मा की पहल पर 20 नवंबर को जिला प्रशासन ने नहर को खुलवाया जरूर, लेकिन अवैध अवरोधों को हटाने में कोई सफलता नहीं मिली। ऐसे में अतिरिक्त पानी निकलना मुश्किल है और रबी फसल की बुआई फिर देर से होने की आशंका गहरा गई है।

कभी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के सपनों को सिंचित करने वाली यह नहर आज खुद उपेक्षा की मार झेल रही है। जब तक प्रशासनिक स्तर पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक किसानों की समस्याएं कम होना मुश्किल दिख रहा है।

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