ये कैसी शराबबंदीः बैन के बावजूद भी युवक बहियार में नशे के हालत में मिल रहे हैं, महुआ पीकर..आखिर जिम्मेदार कौन?

डेस्क: बिहार का कोई भी ऐसा शहर या फिर कस्बा नहीं है, जहां देसी शराब का ठेका चलाया जा रहा हो, गाँव-गाँव में पाउच वाली देसी दारू धड़ल्ले से बिक रही है, ऐसी ही मिलावटी और ज़हरीली शराब पीकर लोग मर भी रहे हैं। यह बात हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि बिहार के समाचार की हेडलाइन कह रही है।

ताजा मामला बिहार के सुर्खियों वाली खबर को देख लीजिए,, बिहार में दो जिलों में पिछले तीन दिन में जहरीली शराब पीने से 33 लोगों की मौत हो चुकी है। मरने वालों में 18 गोपालगंज के रहने वाले थे। और 15 पश्चिम चंपारण के है।

अब प्रश्न ये उठता है, कि बिहार में पूर्ण रूप से शराब बंदी के बावजूद भी जहरीली शराब की बिक्री कहां हो रही है, क्या शराब माफियाओं और पुलिस प्रशासन के बीच लुकाछिपी का खेल चल रहा है? जबसे सूबे के सीएम नीतीश कुमार की सरकार ने शराबबंदी की घोषणा की है। तब से सरकार और पुलिस प्रशासन लाख दावे कर ले, लेकिन हकीकत यही है कि शराब की आपूर्ति जारी है और माफिया काफी मजबूती से सक्रिय हैं। शराब घर-घर में उपलब्ध है। ऑनलाइन डिलीवरी की सुविधा उपलब्ध है।

शराब के सेवन से बर्बाद हो रहे युवापीढ़ी हमारा देश अक्सर जिन बातों पर नाज करता रहा है, उनमें देश की युवाशक्ति की गिनती सबसे ऊपर की पंक्ति में होती है। राजनेता ही नहीं, देश-समाज के प्रबुद्ध तबकों से जुड़े विद्वान भी अक्सर युवा पीढ़ी का उल्लेख इस रूप में करते हैं कि भारत की शक्ति का असली केंद्र तो यही हैं, पर तब क्या हो जब पता चले कि हमारी यह युवा पीढ़ी नशे की भयानक चपेट में है।

आखिर नशे की हालत में युवक बहियार कैसे पहुंचा? बिहार में जब से शराबबंदी हुई है, तब से नए युवा पीढ़ी जहरीली शराब पीने से पीछे नहीं हट रहे है। इसका सीधा फायदा शराब माफियाओं को हो रहा है., क्योंकि उनका कारोबार जो बड़ा हो रहा है। बिहार के न्यूज़ हैडलाइन के सुर्ख़ियों की मानें तो हर गली मोहल्ले में शराब माफिया सक्रिय है, और इसका खामियाजा युवा वर्ग को भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि शुक्रवार को साहेबपुरकमाल थाना क्षेत्र अंतर्गत पंचबीर पंचायत के न्यू जाफर नगर गांव के लाल माता मंदिर के समीप तड़के 12:00 बजे करीब एक 18 वर्षीय युवक नशे के बेहोशी हालत में पाया गया। वही, वहां पर मौजूद युवाओं की मानें तो उक्त युवक ज्यादा देसी शराब (महुआ) पीने कारण इतना बेहोश हो गया की मुंह से फेन बाहर आने लगा, फिर वहां मौजूद युवाओं द्वारा उसे पानी से नहलाया गया, तब जाकर कुछ होश आया,

अगर यही सिलसिला रहा तो आगे क्या होगा? एक अन्य युवा ने बताया उक्त युवक एनएच की ओर से साइकिल से गिरे बजरे लाल माता स्थान की ओर जा रहा था। फिर मंदिर के पास अचानक आकर लेट गया। और उल्टी करने लगा, फिर वहां मौजूद युवाओं को शक हुआ कि कहीं यह युवक जहर खाकर तो नहीं आ गया। कुछ लोग पास जाकर देखा तो पता चला ज्यादा देसी शराब (महुआ) पीने से यह दुर्दशा हो गया। फिर किसी तरह सोशल मीडिया के माध्यम से युवक की पहचान की गई। जो कि पंचवीर का बताया गया, बाद में उसके परिजनों को सौंप दिया गया।

आखिर शराब का उत्पादन कहां हो रहा है? अब सवाल ये उठता है कि आखिर प्रखंड के किस क्षेत्र में देसी शराब का गोरखा धंधा चलाया जा रहा है, और कितने लोग इसमें संलिप्त हैं, क्या प्रशासन की मिलीभगत से यह कारोबार चलाया जा रहा है, या फिर प्रशासन से भी ज्यादा बलशाली शराब माफिया है, जो कुछ नहीं कर पा रही है। आखिर कुछ तो है?

जिम्मेवारी कौन लेगी? अब सोचने वाली बात यह है कि आज एक युवक जिस तरह बहियार में नशे की हालत में पाया गया। कल को कोई दूसरा युवक भी इस हालत में मिल सकता है। क्या पता ज्यादा सेवन करने से युवक की मृत्यु हो जाए, तो इसके जिम्मेदार किसे माना जाएगा? प्रशासन को.,, या शराब माफिया को,, या फिर उसके माता पिता को,,

सरकार तो कह रही है पूरे बिहार में शराबबंदी है, अगर सच में बिहार में पूर्ण शराबबंदी है तो ऐसे ऐसे मामले कहां से आ रहे है। आपको बता दें कि सूबे में शराबबंदी का कानून सख्ती से लागू किए जाने के बावजूद शराब धड़ल्ले से बिक रही है। अंतर सिर्फ इतना आया है कि बिकने का तरीका बदल गया है। गली, कूचा, टोला-मुहल्ला, होटल-रेस्तरां, पार्टी अथवा उत्सव हर जगह उपलब्ध हो जाती है, वो भी होम डिलीवरी के साथ..

ऐसा नहीं कि कोई इन बातों से अनभिज्ञ है। सबको सबकुछ पता होता है। शराबबंदी ने सीधे सरकार के राजस्व को भले ही घटा दिया हो लेकिन सिस्टम के लिए तो किसी कामधेनू से कम नहीं। ऐसा भी नहीं कि पुलिस इसपर काम नहीं करती है। शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो कि पुलिस शराब पकड़ने के मामले में सफल नहीं होती हो। शराब की बड़े पैमाने पर बरामदगी होती है, शराब जब्त होती है, कारोबारी भी धरे जाते हैं। लेकिन शराब की बिक्री का दौर अपनी गति से चलता रहता है।