Kabar Tal : जैव विविधता किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र की मूल विशेषता होती है। इसके बिना किसी भी पारितंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती। बिहार के एकमात्र घोषित रामसेर साइट वेटलैंड काबर टाल की पहचान भी उसकी समृद्ध जैवविविधता से ही है। लेकिन मानवीय स्वार्थ और अंधाधुंध दोहन के कारण यह जैवविविधता आज गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है।
बिहार के बेगूसराय जिले के मंझौल प्रखंड स्थित काबर टाल के मीठे पानी में बड़ी संख्या में पाए जाने वाले जलीय घोंघे यहां की जैवविविधता के प्रमुख घटक रहे हैं। कभी काबर टाल के जल क्षेत्र में तैरते ये घोंघे आसानी से देखे जा सकते थे, लेकिन अब इनकी संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। इसका मुख्य कारण स्थानीय लोगों द्वारा इनका बड़े पैमाने पर शिकार कर बाजार में मांस के रूप में बिक्री किया जाना है।
जलीय घोंघे को अंग्रेजी में एप्पल स्नेल (Apple Snail) कहा जाता है, जबकि इसका वैज्ञानिक नाम एम्पुल्लारिडी (Ampullariidae) है। यह जीव मीठे पानी के क्षेत्रों में पाया जाता है और सामान्यतः तैरते हुए जीवन व्यतीत करता है। इसका शरीर एक कठोर आवरण यानी खोल में सुरक्षित रहता है, जो मुख्य रूप से कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है। यह खोल न केवल घोंघे की सुरक्षा करता है, बल्कि उसके विकास और पोषण की अनुकूलता के साथ आकार में भी बढ़ता जाता है।
घोंघा अत्यंत धीमी गति से चलने वाला जीव है। यह अपने खोल के भीतर से सिर बाहर निकालकर कीचड़युक्त और उथले पानी में भी आसानी से विचरण करता है। इसका मुंह एक पतले कवच जैसे ढक्कन से ढका रहता है, जो बाहर निकलने के बाद ही खुलता है। मिट्टी और जल में मौजूद अनेक सूक्ष्म जीवों को खाकर यह जल को स्वच्छ बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार यह काबर टाल के पारितंत्र को संतुलित रखने वाला एक आवश्यक घटक है।
विशेषज्ञों के अनुसार, घोंघे की संख्या में हो रही गिरावट काबर टाल के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे की घंटी है। पहले जहां यह जीव प्रचुर मात्रा में पाया जाता था, वहीं अब इसकी उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है। अंधाधुंध पकड़कर बाजार में बेचने से इसकी प्रजातियों पर संकट गहराता जा रहा है, जिसका सीधा असर वेटलैंड की जैवविविधता पर पड़ रहा है।
घोंघे का मांस औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। चिकित्सकों के अनुसार, एनीमिया यानी रक्त की कमी और यक्ष्मा जैसी बीमारियों में इसके सेवन की सलाह दी जाती है। इसके अलावा यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम और नियंत्रित करने में सहायक है। मेमोरी पावर बढ़ाने, हड्डियों को मजबूत करने तथा शरीर में आयरन की कमी को दूर करने में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान बताया जाता है। इन्हीं गुणों के कारण बाजार में इसकी मांग लगातार बनी रहती है।
काबर टाल क्षेत्र में घोंघा पकड़ने की परंपरा काफी पुरानी है। आसपास के बाजारों में इसके मांस की खूब बिक्री होती है। काबर टाल के इर्द-गिर्द स्थित बाजारों में घोंघे का मांस 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक बिकता है। इसके अलावा, इसके खोल में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा अधिक होने के कारण मछुआरे और स्थानीय लोग इसे जलाकर चूना तैयार करते रहे हैं। एक समय था जब घोंघों की बहुलता के कारण काबर टाल के चारों ओर बसे गांवों में प्राकृतिक चूना बनाने का यह कार्य एक प्रकार के गृह उद्योग के रूप में फल-फूल रहा था।
हालांकि, लगातार शिकार और घटती संख्या के कारण अब यह पारंपरिक उद्योग लगभग बंद हो चुका है। पर्यावरणविदों का मानना है कि यदि घोंघों के संरक्षण की दिशा में जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो काबर टाल का पारितंत्र गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है। घोंघों की कमी से जल शुद्धिकरण की प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित होगी, जिसका असर अन्य जलीय जीवों और पक्षियों पर भी पड़ेगा।


