Bihar Bandh 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मतदाता सूची सत्यापन के विरोध में महागठबंधन द्वारा बुधवार को आयोजित बिहार बंद ने बेगूसराय में हिंसक रूप ले लिया। चेरिया बरियारपुर प्रखंड के मेहदा साहपुर स्थित SH-55 चौक पर बंद समर्थकों ने एक आम राहगीर के साथ बर्बर तरीके से मारपीट की, जिससे इलाके में तनाव फैल गया।
क्या है पूरा मामला?
एक युवक बाइक से चेरिया बरियारपुर से मटिहानी की ओर जा रहा था। रास्ते में SH-55 चौक पर महागठबंधन समर्थकों ने उसे रोका।
पहले बहस हुई, फिर मामला हाथापाई और मारपीट तक पहुंच गया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, स्थानीय मुखिया के पति बमबम सिंह ने सबसे पहले युवक को थप्पड़ मारा, जिसके बाद मौके पर मौजूद कुछ अन्य युवक — जिनमें मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल थे — मारपीट में कूद पड़े।
इस घटना से इलाके में तनाव बढ़ गया और जातीय-सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की आशंका गहराने लगी।
प्रदर्शन स्थल को लेकर सवाल
स्थानीय लोगों में नाराज़गी है कि बिहार बंद के तहत सड़क जाम ठीक उस जगह किया गया जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक है।
लोगों का कहना है कि अगर विरोध प्रदर्शन करना ही था, तो वह गांव की सीमा या सार्वजनिक चौक पर होना चाहिए था — न कि घनी आबादी के बीच, जहाँ आम लोग दहशत में आ गए।
पुलिस की कार्रवाई
घटना के बाद चेरिया बरियारपुर थाना की पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मौके पर पहुंचकर स्थिति को नियंत्रण में लिया।
मुखिया पति पर गंभीर आरोप
इस पूरे घटनाक्रम में मेहदा साहपुर पंचायत के मुखिया पति बमबम सिंह का नाम सामने आना सबसे चौंकाने वाली बात है।
गौरतलब है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में इसी मुखिया पति ने एक मीडिया इंटरव्यू में कहा था:
“लालू यादव के शासन में गुंडागर्दी चरम पर थी, सड़कें टूटी थीं, शिक्षा बदहाल थी, और लोग असुरक्षित महसूस करते थे। मैं राजवंशी महतो जैसे नेताओं को नहीं जानता।”
अब वही व्यक्ति, विधयाक राजवंशी महतो के साथ महागठबंधन में शामिल होकर न सिर्फ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि आम नागरिक पर हाथ उठाने के आरोप भी झेल रहे हैं।
इससे उनके राजनीतिक दोहरेपन पर सवाल उठने लगे हैं।
लोकतंत्र बनाम अराजकता
यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि —
क्या बिहार बंद जैसी लोकतांत्रिक पहलें अब अराजकता का औजार बन चुकी हैं?
शांतिपूर्ण विरोध के नाम पर आम लोगों को पीटना, जातीय तनाव फैलाना और दहशत का माहौल बनाना न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि लोकतंत्र के मूल्यों के खिलाफ है।
जनता के लिए चेतावनी
लोकतंत्र में विरोध और आंदोलन का अधिकार सबको है, लेकिन अगर नेता हिंसा, सांप्रदायिक उकसावे और गुंडागर्दी को राजनीतिक हथियार बनाएं —
तो जनता को खुद ऐसे चेहरों को पहचान कर नकारना चाहिए।
बिहार को मजबूत और सुरक्षित लोकतंत्र चाहिए — न कि भय, हिंसा और अराजकता।
क्या कार्रवाई होगी दोषी नेताओं पर?
बिहार बंद के दौरान बेगूसराय में हुई हिंसा के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है —
“क्या प्रशासन ऐसे नेताओं को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई करेगा?”