Tokyo Olympics : ओलंपिक शुरू होने से पहले 22 वर्षीय पावर लिफ्टर बलजीत का छलका दर्द कहा- नहीं मिल रहे डाइट के पैसे – कैसे उठाएंगे वजन

डेस्क : देश का भविष्य देश के युवा हाथों में होता है। ऐसा हमें बचपन से सुनने को मिलता है। देश के युवाओं के लिए सरकार समय-समय पर अनेकों योजनाएं चलाती है जिसके तहत उनकी मदद होती है। मदद के जरिए युवाओं की पढ़ाई से लेकर खाने पीने एवं खेलने का खर्च सरकार द्वारा उठाय जाता है ताकि नए खिलाड़ियों की मदद हो सके, लेकिन बलजीत नाम के पावर लिफ्टर के मामले में ऐसा नहीं है बता दें कि बलजीत एक पावर लिफ्टर हैं जो अनेकों गोल्ड मेडल लेकर इस वक्त घर पर बैठे हैं।

बलजीत कुतुबगढ़ बवाना का निवासी है। बलजीत का कहना है कि उनके हिसाब से उनकी डाइट पूरी नहीं हो पा रही है। घर पर रह रहे बूढ़े मां-बाप जो पैसा कमाते हैं वह पर्याप्त नहीं पड़ता है। एक आम आदमी की तनख्वाह जोड़ने में उनको 4 से 5 महीने लग जाते हैं। इन सब के बावजूद बलजीत अपने हौसलों के पक्के हैं। उनका कहना है कि वह दिन रात मेहनत करके भारत की झोली में गोल्ड मैडल लाकर रहूंगा। बलजीत का वजन 64 किलो है लेकिन वह 210 किलो का भार उठा लेते हैं, ऐसे में वह दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में रोजाना प्रैक्टिस करते हैं। वह अपनी डाइट और रोजाना खर्च निकालने के लिए सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी तलाश रहे हैं। उन्होंने छत्रसाल के सभी लोगों से बातचीत की और अनेकों सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाए ताकि उनको एक नौकरी मिल जाए। बलजीत के माता-पिता स्वास्थ्य कर्मचारी हैं। उनको पहले अच्छे खासे पैसे मिलते थे लेकिन कोरोना के बाद से उनको इतने पैसे नहीं मिल रहे हैं, जिससे वह अपने बेटे बलजीत की डाइट का खर्चा उठा पाएं। बलजीत का कहना है कि उनका 1 महीने का खर्चा 15000 रूपए तक का है। ऐसे में वह कहां से इतने पैसों का जुगाड़ करें यह उनको समझ नहीं आ रहा है।

बलजीत ने बताया कि केजरीवाल सरकार ने वादा किया था जो खिलाड़ी नेशनल जीतेगा उसको वह स्कॉलरशिप के 16 लाख रूपए देंगे लेकिन यह वादे धरे के धरे रह गए हैं। बलजीत ने मैडल 2 साल पहले जीता था। तब खुद दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने उनको सम्मानित किया था। ऐसे में 2 साल बाद उनको वही सम्मान अपमान के रूप में नजर आ रहा है।