सुप्रीम कोर्ट VS सरकार! किसके पास है ज्यादा पावर, आज जान लीजिए….

Supreme Court VS Government: देश को संविधान। के तीन स्तंभ की सहायता से चलाया जाता है। वहीं चौथा स्तंभ पत्रकारिता को कहा जाता है। ऐसे में आज हम न्यापालिका और विधायिका की बात करेंगे। यानी की आज जानेंगे की सरकार और सुप्रीम कोर्ट में से किस के पास ज्यादा पावर है? दरअसल दोनों अपने अपने क्षेत्रों में बटें हुए हैं। एक दूसरे के सहयोग से देश में दोनों अपना योगदान देते हैं। आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।

सबसे पहले बात करते हैं सुप्रीम कोर्ट की. भारतीय न्यायपालिका के शीर्ष पर, सर्वोच्च न्यायालय भारत के संविधान को कायम रखने, नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करने और कानून के शासन के मूल्यों को बनाए रखने के लिए सर्वोच्च प्राधिकरण है। इसलिए, इसे हमारे संविधान के संरक्षक के रूप में जाना जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ

  • अदालत की अवमानना ​​(सिविल या आपराधिक) के लिए साधारण कारावास से दंडित करने की शक्ति जिसे 6 महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना जो 2000 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। सिविल अवमानना ​​का अर्थ है जानबूझकर किसी निर्णय की अवज्ञा करना। आपराधिक अवमानना ​​का अर्थ है कोई भी ऐसा कार्य करना जो न्यायालय के अधिकार को कमजोर करता हो या न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करता हो।
  • राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार।
  • संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों के आचरण एवं व्यवहार की जाँच की शक्ति।
  • उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित मामलों को वापस लेने और उन्हें स्वयं निपटाने का अधिकार।
  • उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति करना इसके अधिकार में है। अनुच्छेद 128 में कहा गया है कि सीजेआई किसी भी समय राष्ट्रपति और नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति की पूर्व सहमति से किसी भी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है जो पहले एससी न्यायाधीश के पद पर रहा हो। इसके अलावा कई बड़ी न्यायिक शक्तियां सुप्रीम कोर्ट के पास हैं।

सरकार की शक्तियाँ

यहां विधायिका का मतलब संसद या विधानसभाएं हैं। जिनका काम सिर्फ कानून बनाना नहीं है। कानून बनाना उनकी कई जिम्मेदारियों में से एक है। भारत में द्विसदनीय व्यवस्था है अर्थात संसद के दो सदन हैं। जिसमें राज्यसभा और लोकसभा शामिल हैं। इसी प्रकार, राज्यों में विधान सभाएँ और विधान परिषदें हैं। वर्तमान में भारत के 5 राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था लागू है। दरअसल दोनों का कार्यक्षेत्र अलग-अलग है लेकिन देश चलाने के लिए सहयोग की जरूरत है।