Bol Bam : आखिर कांवड़िए बोल बंम का नारा क्यों लगाते हैं? आज जान लीजिए इसका मतलब…

डेस्क : सावन का पवित्र महीना चल रहा है। बाबा के भक्त कांवड़ ले कर बाबा बैधनाथ पर जल चढ़ाने देवघर जा रहे हैं। भक्ति में लीन कांवरिया सुल्तानगंज से जल भरकर पैदल यात्रा करते हैं। इस दौरान कांवड़ियों की भीड़ से ‘बोलबम’ का नारा गूंज उठता है। इस उद्घोषण में ऊर्जा है, जो कांवड़ ले जाने वाले श्रद्धालुओं में नजर आती है।

लेकिन क्या इसका आध्यामिक अर्थ पता है। यदि नहीं तो आज जानेंगे। दरअसल देवघर के पुरोहित श्रीनाथ पंडित ने इस संबंध में कहा कि चार अक्षरों का यह छोटा शब्द बोलबम एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक मंत्र माना गया है। बम का अर्थ ब्रम्हा, विष्णु, महेश और ओमकार का प्रतीक है। इस शब्द से कठिन से कठिन यात्रा भी सुखद प्रतीत होती है।

देवघर आने वाले श्रद्धालुओं का आवागमन साल भर लगा रहता है। वहीं माघ और सावन महीने में भाड़ी संख्या श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। वहीं बोलबम एक सिद्ध मंत्र है। इसके उच्चारण से एक अलग ऊर्जा और विशेष शक्ति की अनुभूति होती है। इसी नारे के साथ श्रद्धालु सेकडो किमी की दूरी आनंद के साथ तय कर लेते हैं। इस एक नारे से श्रद्धालुओं का कष्ट क्षण भर में दूर हो जाता है और वे अपने भक्ति में लीन हो जाते हैं।

शिव की पूजा में नहीं बजता शंख

भगवान शिव की पूजा में शंख नहीं बल्कि शंख बजाया जाता है। धार्मिक जानकारों के अनुसार शिवपुराण में उल्लेख है कि शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था, जो अपने बल से तीनों लोकों का स्वामी बन गया और ऋषि-मुनियों को परेशान करने लगा।

तभी भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के इस राक्षस का वध कर दिया। शंख शंख की हड्डियों से बनता है। इसलिए भगवान शिव की पूजा में शंख को वर्जित माना गया है। वहीं तीर्थ पुरोहित बताते हैं कि भगवान शिव की पूजा में गाल बजाने की परंपरा है। इससे भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं।