नवरात्रि के छठे दिन होती है शक्ति स्वरूपा माँ कात्यायनी की आराधना

डेस्क : नवरात्रि के छठे दिन शक्ति स्वरूपा माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। माता कात्यायनी को ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। माता के इस स्वरूप में इनका शरीर सोने जैसा सुनहला है। माँ सिंह पर सवार रहती हैं तथा इनकी चार भुजाएं रहती हैं। जिसमे एक हाथ मे तलवार तथा दूसरे में कमल पुष्प धारण किये रहती हैं। एवं अन्य दोनो हाथ वरद मुद्रा में रहते हैं।इस रूप में माँ का शक्ति व स्नेह दोनो का सम्मिलित रूप देखने को मिलता हैं। माँ कात्यायनी को दानवों और पापी जीवों का नाश करने वाली देवी कहा जाता है।

क्या है माँ के अवतरित होने की कहानी

पौराणिक कथाओं के अनुसार महर्षि कात्यायन की इक्छा थी कि देवी माँ उनके घर मे पुत्री के रूप में जन्म ले। इसकेलिए उन्होंने काफी तप किया। जिस से देवी खुश हो कर उनकी प्राथना स्वीकार की तथा अशिवनी कृष्ण चतुर्दशी को महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। इसके बाद महर्षि ने तीन दिनों तक इनकी पूजा की और दशमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध किया और सभी को अत्याचार से मुक्ति दिलाई।महिषासुर के अलावे कात्यायनी देवी ने शुम्भ निसुम्भ नामक असुरों का भी अंत किया । ये दोनों आसुरी बल पर इंद्र के तीनों लोकों का राज्य व धनकोष छीन लिया। नवग्रहों को भी बंधक बना लिया। सारे देवतागण अंत मे मिलकर माँ की स्तुति व स्मरण किया तब माँ कात्यायनी ने ही इन दोनों के आतंक से सबको मुक्ति दिलाई।

कात्यायनी माँ की पूजा से खत्म हो जाती है सारी परेशानियां

कहा जाता है कि माँ कात्यायनी की आराधना से जीवन की ज्यादातर रुकावटे व परेशानियां खत्म हो जाती है। वही अविवाहितों द्वारा देवी की पूजा करने से अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रज की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पाने के आइये इनकी ही पूजा की थी। माता कात्यायनी की आराधना करने से साधक अलौकिक तेज से युक्त तथा भयमुक्त रहता है। उसके भीतर शक्ति का संचार होता है। देवी कात्यायनी बहुत ही फ़लदायिनी हैं।