जानें- कौन हैं मेहरबाई? जिसने डूबते TATA को बचाने के लिए गिरवी रखा था कोहिनूर हीरा….

आपने सुना तो होगा कि हर सफल आदमी के पीछे एक महिला का हाथ होता है, तो आईए आज हम आपको ऐसी ही एक महिला के विषय में बताने जा रहे हैं।  टाटा ग्रुप और उसके समाज के लिए किये गए उसके अच्छे कामों को हम सभी जानते हैं, लेकिन ये  कहानी उसी टाटा ग्रुप की एक ऐसी महिला की है, जिनके सहयोग की वजह से ही आज टाटा ग्रुप यहाँ पहुंचा है। 

टाटा ग्रुप के दूसरे अध्यक्ष सर दोराबजी टाटा की पत्नी मेहरबाई टाटा, इन्होंने टाटा ग्रुप (1920) को बहुत बड़े संकट से उबारने में मदद की थी, साथ ही ये अपने समय में एक जागरूक समाजसेविका और बाल विवाह के खिलाफ सामाजिक कार्य करने वाली महिला प्रमुख थीं।  1920 के दशक में टाटा स्टील (तब टिस्को) एक बहुत बड़े संकट से गुजर रहा था और पूरी तरह डूबने की कगार पर था, तब दोराबजी टाटा को लगा की अब सब कुछ खत्म हो जाएगा लेकिन अपनी समझ से मेहरबाई ने उन्हें इस संकट से उबार लिया। 

कैसे बचाया टाटा को मेहरबाई ने?

1920 में जब टाटा समूह डूबने की कगार पर थी, तब मेहरबाई ने अपने गहने गिरबी रखकर धन इकट्ठा करने की सलाह दी, तो उनके पति ने इससे मना कर दिया, लेकिन बाद में दोराबजी टाटा को अपनी पत्नी की बात माननी पड़ी।   मेहरबाई के पास 245 कैरेट का जुबली डायमंड था, जो कि कोहीनूर से दोगुना बड़ा था, जो उन्हें कभी दोराबजी टाटा ने ही उपहार में दिया था। 1920 के समय इसकी कीमत 1,00,000  पाउंड थी। 

ये डायमंड पहले इमपीरियल बैंक के पास गिरबी रखा गया था, बाद में इसे बेच दिया गया और इसके बाद ही सर दोराबजी ट्रस्ट को बनाया गया।  मेहरबाई टाटा 1929 से बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम के समय सलाह ली गई थी।  वो भारतीय महिला लीग संघ की अध्यक्ष और बॉम्बे प्रेसिडेंसी महिला परिषद की अध्यक्ष भी थीं।  जमशेदपुर में मेहरबाई कैंसर हॉस्पिटल और दोराबजी टाटा पार्क है, जहाँ आपको ऐसी और कई कहानियां सुनने को मिल जाएंगी।