जम्मू के शीतल का जज्बा, बिना हाथ पैरों से करती है तीरंदाजी 

कहते हैं जीवन कभी अनुकूल नहीं रहता यह हमारे हिसाब से नहीं चलता, परिस्थितियां अगर प्रतिकूल हो तो कई लोग इसे ईश्वर का विधान मान कर हार मान लेते हैं। वही दूसरे प्रकृति के लोग विपरीत परिस्थितियों में भी अपने जज्बा और हौसला नहीं खोते और परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेते हैं।कुछ ऐसा ही किस्सा है जम्मू के किश्तवाड़ के एक छोटे से गांव लोइधर की शीतल देवी का, शीतलदेवी के बचपन से ही दोनो हाथ नहीं है, लेकिन वो एक धुरंधर तीरंदाज हैं। उन्होंने 4 नेशनल खेले हैं और एक में सिल्वर मेडल भी अपने नाम किया है।

शीतल के बचपन से ही हाथ नहीं है, शीतल के पिता एक किसान है और मां एक ग्रहणी हैं, शीतल के कोच बताते हैं कि शीतल में एक गजब का जज्बा है। उन्होंने शीतल को 11 महीने ट्रेनिंग शीतल के लिए इन्वेंशन करनी पड़ी इसके अलावा 2 महीने उन्होंने शीतल पर काम किया है, और उन्हें आने वाले पैराओलिंपिक में शीतल से मेडल लाने की पूरी उम्मीद है। 16 साल की उम्र में शीतल ने कई खिताब अपने नाम किए हैं। शीतल बताती है कि उन्हें इसके बारे में कुछ पता नहीं था,

एक मैडम के जरिए उन्हें आर्चरी के बारे में पता चला, उसके बाद उनकी मुलाकात कोच से हुई। शीतल ने बताया कि सुबह 8:00 से 12 को ट्रेनिंग करती है उसके बाद लांच उसके बाद फिर प्रैक्टिस और फिर बाद में फिजिकल एक्सरसाइजेज। शीतल पैरों से तीरंदाजी करने वाली दुनिया की पहली धनुर्धर हैं।