Prithvi Shaw: बचपन में मां चल बसी, पिता ने बेटे के लिए दुकान बेच दी..बेटा क्रिकेट में मचा रहा तहलका

Prithvi Shaw: भारत के लिए खेलने वाले उभरते हुए सलामी बल्लेबाज पृथ्वी शॉ को अब हर कोई पहचाने लगा है। आईपीएल में धूम मचाने वाले पृथ्वी शॉ ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष किया है, इस संघर्ष में उनके पिता की अहम भूमिका है। साल 1999 को महाराष्ट्र के थाने क्षेत्र में जन्म लेने वाले पृथ्वी बिहार के गया जिले के मूल निवासी हैं। पृथ्वी बचपन से ही क्रिकेट के प्रति अधिक रुझान रखते थे।

उसी वक्त से इन्होंने क्रिकेटर बनने का सपना देखना शुरू कर दिया। पृथ्वी जब 4 साल के थे। उन पर दुखों का बड़ा पहाड़ टूट पड़ा, जिसके बाद उनके साथ-साथ उनके पिता को भी काफी संघर्ष करना पड़ा। इनके बारे में जानते हैं विस्तार से।

कम उम्र में दुखों का पहाड़ : पृथ्वी जब 4 वर्ष के थे तब ही उनकी मां का निधन हो गया था। छोटी उम्र में ही अपनी मां के चले जाने से पृथ्वी को गहरा सदमा लगा। वहीं, उनके पिता पंकज को भी बड़ा झटका लगा। मासूम बेटे को पालने की जिम्मेदारी अब उसके कंधों पर थी। उन्होंने धरती को कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी। पिता के साथ ही उन्होंने बेटे को मां का प्यार भी दिया।

पिता ने किया संघर्ष : अपनी मां को खोने के बाद, पृथ्वी शॉ मुंबई के बाहरी इलाके विरार में पले-बढ़े। शुरुआत में पिता ने पृथ्वी को विरार में ही एक क्रिकेट अकादमी में दाखिला दिलाया। आगे आठ साल की उम्र में उन्हें बांद्रा के रिजवी स्कूल में दाखिला मिल गया। ताकि पृथ्वी क्रिकेट में अपना करियर बना सके। पृथ्वी को स्कूल आने-जाने में लगभग 140 किमी का सफर करना पड़ता था, जो वह अपने पिता के साथ किया करता था।

बेटे के लिए किया त्याग : पृथ्वी के पिता अपने बेटे के लिए नाश्ता बनाने के लिए सुबह साढ़े तीन बजे उठ जाते थे। और सुबह 4:30 बजे पिता-पुत्र विरार से बांद्रा के एमआईजी ग्राउंड जाते थे। पिता पंकज वहीं रहता था और शाम को बेटे को लेकर घर लौट आता था। पृथ्वी के जीवन को बेहतर बनाने में उनके पिता का बहुत बड़ा योगदान है। उनके पिता की कपड़े की दुकान थी, जो बहुत अच्छी चलती थी। उनका कपड़ा सूरत और बड़ौदा जाता था। लेकिन, बेटे के सपने को पूरा करने के लिए पिता को अपनी दुकान तक बेचनी पड़ी।

पिता को किया खुश : बाप-बेटे की मेहनत भी रंग लाई, स्कूल की ओर से खेलते हुए पृथ्वी ने महज 14 साल की उम्र में 330 गेंदों में 546 रनों का बड़ा स्कोर खड़ा किया. जो स्कूल क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड है। इसके बाद विजय मर्चेंट अंडर-16 के लिए मुंबई टीम के कप्तान बने। साल 2016 में अंडर-19 टीम का हिस्सा बने। वहां शानदार प्रदर्शन किया। साल 2017 में रणजी डेब्यू किया था। पहले ही मैच में शतक लगाने वाले सबसे युवा खिलाड़ी बने।