MBA सरपंच: अगर हमारे समाज के लिए कुछ और करने की इच्छा हो तो कभी भी की जा सकती है। कई लोग ऐसे हैं जो लाखों रुपए छोड़कर समाज के लिए लड़ रहे हैं। उन्हीं में से एक नाम है राजस्थान के टोंक जिले के सोढ़ा गांव की छवि राजावत का। छवि राजावत दो बार सरपंच रहीं, 2003 में 9 साल, पुणे से एमबीए की। छवि राजावत एक बड़ी कंपनी में काम करती थीं। इसके लिए उन्हें एक लाख रुपये वेतन दिया जाता था।
यह सब छोड़कर वह अपने गांव आ गई और सरपंच के रूप में सेवा दे रही है। गांव में पानी की कमी को पूरा करना था। जब सरकार से कोई मदद नहीं मिली तो छवि ने अपने पिता, दादा और अपने तीन दोस्तों की मदद से क्राउडफंडिंग के जरिए पैसे जुटाए। लोगों को श्रमदान के लिए राजी किया और गांव के तालाब की खुदाई कराई। दो दिन की बारिश के बाद तालाब लबालब भर गया।
छवि ने गांव में 40 सड़कें बनवाईं। सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया। वह अब गांव में जैविक खेती को बढ़ावा देने में लगी हुई हैं। वह खुद खेती भी करती हैं और ट्रैक्टर से खेत जोतती हैं। सोढ़ा गांव की आबादी 10 हजार है। छवि कहती हैं कि जब वह 2010 में पहली बार सरपंच बनीं तो गांव में अकाल, पानी की कमी, खराब सड़कें और गरीबी जैसी समस्याएं थीं। आज इनमें से अधिकांश समस्याओं का समाधान हो गया है। छवि राजावत को सोडा गांव में बाईसा के नाम से भी जाना जाता है।
वह सरपंच का पद संभालने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति थीं। छवि के चुनाव जीतने से 20 साल पहले उनके दादा ब्रिगेडियर रघुबीर सिंह भी उसी गांव के सरपंच रह चुके थे। छवि घर-घर जाकर पता करती थी कि गांव में क्या काम होना चाहिए। उन्हें पता चला कि गांव की महिलाओं के लिए गांव में शौचालय नहीं है। इसलिए उन्होंने तालाब खोदकर शौचालय निर्माण को प्राथमिकता दी।