Special Environment Day : एक समय था जब अपने देश में करोड़ों की संख्या में गिद्ध हुआ करते थे। अपने आसपास के क्षेत्र और परिवेश भी गिद्धों से भरे थे। कोई जानवर मरा नहीं कि गिद्ध की गजब घ्राण शक्ति उसे उस तक पहुंचा देते थे। सैकड़ों के झुंड में गिद्ध उतर जाते थे और मरे जानवरों के मांस को खाकर सिर्फ हड्डियों छोड़ते थे। जिसमें गीदड़ लटके रहते थे। कभी कभी मरे जानवरों के शव के पास गिद्ध, गीदड़ और कौए के बीच उसके मांस खाने को लेकर गजब की प्रतियोगिता देखने के लिए बचपन में उत्सुकता से भर जाता था।
वह डरावना दृश्य अक्सर नदियों झीलों के किनारे और बड़ी गाछियों में दिख जाता था जहां चमार उनकी खाल तो उतार जाते लेकिन छिले शरीर को गिद्धों सियारों के लिए छोड़ जाते थे लेकिन,आज शायद ही गिद्ध दिखते हैं। बिहार से पिछले 20-25 वर्ष पूर्व ये अनोखे और मानव तथा प्रकृति के उपकारी पक्षी गायब हो गए। एक आंकड़े के अनुसार वर्ष 1990 से 2010 के बीच भारत से पांच करोड़ से अधिक गिद्ध गायब हो गए। इसने दुनिया भर में प्रकृतिवादियों और पर्यावरण प्रेमियों की चिंता बढ़ गई।
मौतों का कारण —
मवेशियों के इलाज में डायक्लोफ़ेनाक दवा के इस्तेमाल को वैज्ञानिकों ने इसके मरने और गायब होने का मुख्य कारण बताया। इसके अलावे अन्य रसायनों के प्रयोग, मानवीय गतिविधियों से इसके नेचुरल हैविटेट वास स्थान में कमी, जलवायु परिवर्तन पर पक्षियों का अऔर भारतीय उप-महाद्वीप में अवैध वन्य जीव व्यापार इनकी संख्या के कारण बनते गए और अधिकांश क्षेत्रों से ये विलुप्त होते गए।
प्रभाव —-
अब गिद्धों के गायब होने से मानव जीवन को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। अमेरिका की एक रिसर्च पत्रिका अमेरिकन इकोनोमिक एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि अनजाने और मानवीय करतूतों से इन पक्षियों के मौत से मानव जीवन प्रभावित हो रहा है। बड़े पैमाने पर इनकी मौत से वातावरण और मिट्टी तथा जल में घातक बैक्टीरिया और संक्रमण फैलता जा रहा है। इसकी वजह से पिछले पांच साल में करीब पांच लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है।
गिद्ध प्राकृतिक अपमार्जक थे और वे मरे जानवरों की लाश खाकर वातावरण, मिट्टी और जल को प्रदूषण से बचाते थे । इनके नहीं रहने का कारण जानवरों की लाश का सड़ना जारी रहा और वातावरण प्रभावित होता रहा। इधर मरे जानवरों के सड़ते मांस को खाते कुत्ते पागल होते गए और उन्होंने मनुष्य तथा अन्य जीवों को काटने से उनकी मौत होने लगी। मरे मवेशियों को तुरंत चट कर जानेवाले गिद्धों की प्राकृतिक अपमार्जक का कोई विकल्प दुनिया को नहीं है और आज मरे जानवरों की लाशें नदियों, जलस्त्रोतों और मिट्टी को भयानक प्रदूषित करते वातावरण में गंदगी फैला रहे हैं।