डेस्क : हम हमारी रोजमर्रा की बातों में कई मुहावरों का इस्तेमाल करते हैं…इनमें से कई तंज भी होते हैं…कई शब्द और मुहावरे ऐसे भी हैं जो पीढ़ियों से हमारी जुबान पर बैठे हैं और हम उसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं लेकिन अर्थ से बिल्कुल अंजान हैं..
आज हम एक ऐसे ही दिलचस्प मुहावरा- ‘भाड़ में जाओ’ की बात करेंगे. ‘भाड़’ शब्द से जुड़े कई मुहावरे का इस्तेमाल हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी में करते हैं जैसे….’भाड़ में गई ये नौकरी’, ‘भाड़ में गया प्यार-व्यार’, ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’.
आपने इसका इस्तेमाल तो बहुत बार किया होगा लेकिन क्या आपने सोचा है कि इस भाड़ का मतलब आखिर क्या होता है? भाड़ का मतलब असल में भट्ठी होता है जो इतनी बड़ी और गर्म होती है कि अगर इसमें पूरा इंसान भी इसमें चला जाए तो जलकर भस्म हो जाए…और यहीं से यह वाक्य बना जिसमें यह आग है…भाड़ में जाओ…
तो भाड़ में जाओं यानि ‘आग में जाओ’ या ‘जल कर भस्म हो जाओ’ है और अगर इसके अंग्रेजी रुपांतरण की बात करें तो इसे ‘go to hell’ भी कहा जाता है. फर्क बस इतना है कि अंग्रेजी वाला नर्क में भेजता है तो वहीं हिंदी वाला सीधी भट्टी में भेज देता है…
तो इसका सीधा मतलब ये है कि जब आप किसी को गुस्से में अगर ये मुहावरे बोलते हैं तो इसका मतलब है कि आप उसे किसी गहरी, धधकती जगह में फेंकना चाहते हैं जहां से वो वापस ना आने पाए…अगर अगली बार आपसे कोई कहे ‘भाड़ में जाओ’ तो आप समझ जाए कि वो आपको कहां भेजना चाहता है…
प्रचलित कहावत ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’ का भी इससे सीधा तालुकात है…उत्तर भारत खासकर यूपी, बिहार और पूर्वांचल में पारंपरिक मिट्टी और ईंट से बनी ये छोटी भट्टी आज भी देखने को मिल जाती है….जहां चना, मुरमुरा, मूंगफली, दाल आदि को बालू पर रखकर भूना जाता है…इस भट्टी का तापमान इतना ज्यादा होता है कि कोई भी पदार्थ कुछ ही मिनट में बदल जाती है…
यह शब्द दोस्तों के मजाक, गुस्से सब में आता है…लेकिन अब जब आप इसका मतलब जान चुके हैं तो समझ सकते हैं कि यह मुहावरा कितना तीखा, प्राचीन और संस्कृति से जुड़ा हुआ है…अगली बार जब भी आप ये मुहावरा सुने तो याद रखिएगा ये सिर्फ गुस्सा का प्रतीक नहीं है बल्कि इसमें सदियों पुरानी भाषा और लोकपरंपरा की कहानी छिपी है…

