भगवान शिव के पास कैसे आया त्रिशूल, डमरू और नाग? जानें- इसके पीछे की कहानी…..

शिव त्रिदेवों में से एक हैं। इन्हें भोलेनाथ, शिव शंभू, शंकर और आशुतोष आदि नामों से जाना जाता है। भगवान महादेव सारे संसार के मालिक हैं। भगवान महादेव अपने भक्तों के सारे दुख हर लेते हैं। भगवान शिव का रूप भी सभी देवताओं से भिन्न है। हाथ में त्रिशूल और डपरू, गले में सर्प और माथे पर चंद्रमा उनका यह रूप देखते ही बनता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव ने त्रिशूल, डमरू और नाग कैसे धारण किया। इसके पीछे की क्या कहानी है। आज इस आर्टिकल में हम आपको भगवान शिव के द्वारा त्रिशूल, डमरू और नाग धारण करने के पीछे की रोचक कहानी बताने जा रहे हैं। तो चलिए जानते हैं कैसे आया भगवान शिव के पास त्रिशूल,डमरू और नाग।

त्रिशूल

शिव पुराण के अनुसार धनुष औरत त्रिशूल जैसे अस्त्रों के निर्माणकर्ता स्वयं भगवान शिव ही हैं। त्रिशूल उनके पास कैसे आई इसके पीछे एक रोचक कहानी है। कहते हैं कि जब सृष्टि का निर्माण हुआ तो भगवान शिव प्रकट हुए।

उनके साथ तीन गुण रज, तम और सत्व भी प्रकट हुआ। इन तीनों गुना के बिना सृष्टि का सृजन और सुचारू रूप से इसका संचालन संभव नहीं था। इस वजह से भगवान शिव ने इन तीनों गुना को अपने हाथ में शूल के रूप में बांधकर रखा। इन तीनों शूल से मिलकर त्रिशूल का निर्माण हुआ।

नाग

शिव के गले में हमेशा एक नाग लटकता रहता है। शिव पुराण के मुताबिक इस नाग का नाम बासुकी है। बासुकी नागों के राजा थे। नागलोक में इनका शासन था। आपको बता दें कि समुद्र मंथन के दौरान के स्थान पर उन्होंने ही लपेटा गया था। नागराज बासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने गले में धारण कर लिया।

डमरू

भगवान के डमरू धारण करने के पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहते हैं कि जब सृष्टि का आरंभ हुआ तो देवी सरस्वती प्रकट हुई। देवी सरस्वती ने वीणा से सृष्टि को ध्वनि दी। लेकिन इस ध्वनि में कोई सुर या संगीत नहीं था। उस समय शिवजी ने 14 बार डमरू बजाया। इस डमरू के सुर, ताल और संगीत से सृष्टि पर ध्वनि का जन्म हुआ। शिव पुराण के अनुसार डमरू भगवान ब्रह्मा का स्वरूप है।