बिहार में जब भी विकास की चर्चा होगी तो रामविलास पासवान से शुरुआत होगी, क्यों? जानें

डेस्क : पिछले 40 वर्षों से केंद्रीय मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान की 10 अक्टूबर की शाम पटना में दीघा स्थित इलाके में जनार्दन घाट पर मुखाग्नि दी गई। रामविलास पासवान लोकनायक जयप्रकाश नारायण के बाद दूसरे ऐसे नेता हैं जिन्हें अंतिम संस्कार के समय मिलिट्री ऑफ ऑनर दिया गया। अब राजनीति में सारे नेता उनके बेटे चिराग पासवान की ओर देख रहे है, क्योंकि उन्होंने राजनीतिक उत्तराधिकारी के पद पर मुख्यमंत्री बन नीतीश कुमार के खिलाफ बगावत चालू कर रखी है।

आपको बता दें कि रामविलास पासवान ने खुद नीतीश कुमार को अपने जीवन में लगातार तीन चुनावों में रोकने का पूरा प्रयास किया था लेकिन हर बार नीतीश विजई होकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते रहे हैं। यह 2005 नवंबर 2010 और 2015 की बात है। उस ही बगावत को वापस चिराग पासवान ने जारी रखा है अब देखना यह होगा कि क्या वह नीतीश को चुनौती दे पाएंगे या नहीं। इसका फैसला तो ईवीएम के नतीजों के आने के बाद ही होगा। अगर राज्य की रणनीतियों में विकास की बात उठेगी तो उसमें रामविलास पासवान को जरूर याद किया जाएगा बिहार में आज भी कई ऐसी परियोजनाएं काम कर रही हैं जिनका संचालन रामविलास पासवान द्वारा किया गया था।

उनके द्वारा रेल-सह-सड़क पुल जो बना है वह कल शाम उनकी मुखाग्नि के दौरान सबको नजर आ रहा था। इसका सर्वेक्षण का शिलान्यास रामविलास पासवान ने उस समय के प्रधानमंत्री देवगौड़ा से करवाया था। इसके बाद हाजीपुर में रेलवे का जोनल दफ्तर उन्हीं के द्वारा चालू किया गया था। यह बड़ी परियोजनाएं एवं बड़े प्रोजेक्ट के टेंडर तब पारित हुए थे जब नीतीश कुमार रेल मंत्री बने थे। उन वक्त नीतीश के समय पर दो और मेगा ब्रिज पहला मुंगेर और दूसरा कोसी नदी पर बना हुआ है। लालू प्रसाद यादव ने दीघा ब्रिज पर सड़क ब्रिज का निर्माण चालू करवाया था और राज्य को एक नहीं बल्कि 3 बड़े रेल कारखाने दिए थे परंतु विकास के दौर की नींव रामविलास पासवान द्वारा ही रखी गई थी। रामविलास पासवान ने राज्य में विकास की राजनीति को फिर से परिभाषित किया था।