बिहार के कैमूर पहाड़ी जंगलों में घूम रहे हैं बाघ, मध्यप्रदेश से कैमूर तक बनेगा टाइगर कॉरिडोर, जाने

न्यूज डेस्क : बिहार के कैमूर जिले के पहाड़ियों में वन विभाग की टीम ने पुख्ता के साथ जंगलों में बाघ पाया है। बता दें कि जिस जिस तरह बिहार में वाल्मीकि राष्ट्रीय व्याघ्र अभयारण्य का विकास हुआ है और उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने पर विचार किया जा रहा है। उसी तरह रोहतास एवं कैमूर जिला में फैले कैमूर वन्यप्राणी आश्रयणी क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित करने की कवायद तेज हो गई है।

यदि इसका भी विकास वाल्मीकि अभयारण्य की तरह किया जाना है तो यह पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक समृद्धि में भी मददगार होगा। इसके विकास से बिहार के साथ-साथ झारखंड राज्य भी लाभान्वित होगा बताते चलें कि मध्यप्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्र से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर कारिडोर बनाने की पहल भी शुरु हो चुकी है। पहली बार राष्ट्रीय बाल संरक्षण प्राधिकरण ने यहां के लिए बजट का भी प्रावधान किया है। कैमूर वन्य प्राणी आश्रयणी क्षेत्र के रोहतास, तिलौथू, औरैया व भुड़कुड़ा पहाड़ी पर भी बाघ के कई पदचिह्न देखे गए हैं।

टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित से बाघ का होगा संरक्षण : बता दे की इस संबंध में वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि लगातार इस जंगल में बाघों की आवाजाही होने का पुख्ता सबूत राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को उपलब्ध कराया गया है। मध्यप्रदेश के संजय डुबरी टाइगर रिजर्व से कैमूर वन्य जीव आश्रयणी का क्षेत्र मिलता है। संजय डुबरी से बांधव गढ़ टाइगर रिजर्व जुड़ा हुआ है। पलामू का टाइगर रिजर्व भी इससे जुड़ा है। ऐसे में इसे टाइगर कारिडोर बनाने की पहल शुरू है। इससे बाघों को विचरण के लिए बड़ा क्षेत्र मिलेगा।

करीब चार दशक पहले से यहां रहते हैं बाघ : आसपास गांव के बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं, कैमूर पहाड़ी के घने जंगलों में चार दशक पूर्व से ही बाघों का बोलबाला है। लोगों का कहना है कि यहां काफी संख्या में 1975-76 तक बाघ थे। पेड़ों के कटने, वन माफिया के कारण वनों में आवाजाही बढ़ने के कारण बाघों की संख्या धीरे-धीरे समाप्त हो गई। हाल के वर्षों में माफिया व नक्सलियों पर शिकंजे तथा वन विभाग द्वारा सक्रियता बढ़ने से इस क्षेत्र में बाघों की आवाजाही फिर बढ़ी है।

मिले बाघों के पंजे के निशान : जानकारी के मुताबिक, नवंबर 2019 में तिलौथू क्षेत्र में पहली बार बाघ के पंजों के निशान व मल प्राप्त हुआ था। मल को देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की प्रयोगशाला में जांच कराई गई थी। वहां से इसकी पुष्टि भी हुई। जांच में पंजे के निशान भी बाघ के ही पाए गए। इसका डीएनए बांधवगढ़ के बाघ से मिला है। अब यहां जगह-जगह वाटर होल बनाकर बाघों के लिए पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है।

रोहतास के डीएफओ प्रद्युम्न गौरव कहते हैं : उनका कहना है कि कैमूर जिले का यह वन क्षेत्र इलाका 1800 वर्ग किमी से ज्यादा फैला हुआ है। यहां तक की मध्य प्रदेश के दो टाइगर रिजर्व क्षेत्र और झारखंड के बेतला टाइगर रिजर्व क्षेत्र से भी इसका सीधा कारिडोर बनता है। इससे इस जंगल में लगातार बाघों की आवाजाही हो रही है। इसका पुख्ता प्रमाण एनटीसीए को उपलब्ध कराया गया है। कैमूर वन्य जीव आश्रयणी तक टाइगर कारिडोर बनाने की पहल हो रही है। इस वन्य क्षेत्र के रोहतास, तिलौथू, चेनारी, औरैया व भुड़कुड़ा पहाड़ी पर भी बाघ के पद चिह्न व उनकी आवाजाही देखी गई है तथा बाघ का विचरण करते हुए तस्वीर भी ऑटोमेटिक कैमरे से ली गई है।