उत्तर-दक्षिण बिहार की कनेक्टिविटी होगी बेहतर- गंगा नदी पर कच्ची दरगाह-राघोपुर पुल का निर्माण दिसंबर तक होगा पूरा….

Kachi Dargah-Raghopur Bridge : उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार को जोड़ने के लिए बन रहे बिदुपुर-कच्ची दरगाह सिक्सलेन पुल का निर्माण युद्धस्तर पर किया जा रहा है. इस पुल के बन जाने से उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार के बीच की दूरी काफी कम होने वाली है । यह नेपाल के लिए अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग का भी एक अच्छा विकल्प बनाने जा रहा है । 67 पिलर वाला यह ग्रीनफील्ड केबल ब्रिज अपने आप में काफ़ी अनूठा होगा। पुल 2023 दिसंबर तक बन कर तैयार हो जाएगा। दक्षिण कोरिया से खरीदे गए 15.2 मिमी केबलों पर पुल की खंड संरचना को निलंबित किया जा रहा है।

वहीं, राघोपुर दियारा को पुल से जोड़ने के लिए एप्रोच लिंक रोड का काम भी शुरू हो गया है। यह देश का सबसे लंबा एक्स्ट्रा डोज केबल ब्रिज होगा। महासेतु का निर्माण करा रही एजेंसी के प्रशासनिक सूत्र ने बताया है कि कोशिश की जा रही है कि पुल का काम पूरा कर तय समय में सौंप दिया जाए.
युद्ध स्तर पर निर्माण कार्य

छह लेन के पुल के 67 पैरों का निर्माण कार्य प्रगति पर है। करीब 56 पियर के निर्माण को अंतिम रूप दिया जा चुका है। वे ऊपरी संरचना के सैंडल से सुसज्जित होने वाला हैं। जबकि बिदुपुर छोर से गंडक नदी में आधा दर्जन खंभे 58, 59, 60, 61, 62, 63, 64, 65, 66, 67 तथा कच्ची दरगाह की ओर 34 तथा गंगा नदी में 11 खंभे मिलने का काम किया जा रहा है. पुल निर्माण कंपनी एलएंडटी कंपनी के अधिकारियों की माने तो गंगा और गंडक नदी के बीच बन रहे घाटों का निर्माण भी युद्धस्तर पर किया जा रहा है.

अधिकारियों को उम्मीद है कि पूल 2023 दिसंबर में बनकर तैयार हो जाएगा। पुल निर्माण एजेंसी के प्रशासन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पुल का निर्माण युद्धस्तर पर किया जा रहा है। पुल का काम समय सीमा में पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है।

केबल के सहारे सिक्स लेन ग्रीनफील्ड ब्रिज होगा : छह लेन का ग्रीनफील्ड ब्रिज केबल स्टे होगा। जिसमें दोनों पैरों के बीच 160 मीटर की दूरी के बीच का स्ट्रक्चर केबल पर लटका रहेगा। इसके लिए दक्षिण कोरिया से 15.2 एमएम केबल मंगवाई गई है। वहीं, पूल के ज्यादातर लेग्स पर केबल फिक्सिंग स्ट्रक्चर सैंडल लगाए गए हैं, जिसमें 15.2 एमएम केबल लगाई जाएगी। मालूम हो कि गंगा में मालवाहक जहाजों की आवाजाही को देखते हुए दोनों पैरों के बीच की दूरी 160 मीटर रखी गई है, ताकि मालवाहक जहाज नदी के रास्ते कोलकाता से वाराणसी तक निर्बाध रूप से आ सकें.