बेगूसराय के इतिहास में सालों पहले आयी महामारी में उजर गया था यह गाँव, अब उजर रहे 500 हरे-भरे वृक्ष और वीरान पड़ा कुँआ

एसकमाल/ बेगूसराय : साल 2021 का अब आगमन होने वाला है। साल दर साल समय आ रहा है और जा भी रहा है। मगर सरकारी योजनाओं में वादा किये गये स्थानों का जीर्णोद्धार नहीं हो पाया है। बात उस योजना का जिसे सरकार पूरी तरह से सफल बता कर नई सरकार का गठन करने में सफल रही हैैै। “जल जीवन हरियाली योजना” इस योजना की शुरुआत बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी के द्वारा राज्य में वृक्षा रोपण ,पोखरों और कुओ का निर्माण करने के लिए किया गया था। इस योजना के अंतर्गत बिहार राज्य में कई पोधो का रोपण किया जायेगा, और पानी के परम्परागत स्रोतों तलाब,पोखरों कुँआ का निर्माण एवं मरम्मती किया जायेगा । मगर क्या वाकई में वृक्षों का रोपण हुआ, क्या कुआं का मरम्मत हुआ, पोखरो का निर्माण हुआ। सरकार के अनुसार तो हुआ, लेकिन जमीनी हकीकत क्या कहती है। जिस जल जीवन हरियाली योजना को लेकर सरकार ने 6,007.98 करोड़ रुपए खर्च करने का वादा किया किये। क्या वाकई में सफल हुआ ?

इस जगह जल जीवन हरियाली का हो गया टॉय टॉय फिस्स हम बात कर रहे हैं बेगूसराय जिले के साहेबपुर कमाल प्रखंड अंतर्गत न्यू जाफर नगर गांव के रेलवे लाइन के उत्तरी छोर में अवस्थित लाल माता स्थान की। जिसका का इतिहास बरसों पुराना है, लाल माता स्थान एक मंदिर ही नहीं बल्कि 500 वृक्षों के बीच एक बसा सुंदर सा मंदिर है। और मंदिर के बगल में लगभग 3 एकड़ में फैला हुआ एक तलाब भी है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार लगभग 100 वर्ष से भी अधिक यह मंदिर और यह बगीचा है। जो लगभग 4 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें 500 से अधिक तरह-तरह के वृक्ष पाए जाते थे।

सालों पहले फैल गया था यहां महामारी , उजर गया था गाँव का गाँव आखिर क्या हुआ था लाल माता स्थान में जिसका अस्तित्व क्षणभर में मिट गया। आज से लगभग 80 वर्ष पहले सन् 1942 की बात है। लगभग 200 घर से अधिक एक गांव बसा हुआ था। तकरीबन 500- 600 की आबादी थी। उसी के अनुसार लाल माता मंदिर का निर्माण हुआ। उस गांव में उन सभी ग्राम वासियों बसने से पहले से ही वहां पर वन मौजूद थे। जुलाई का महीना था। की अचानक उस गांव में महामारी फैल गया। तथा गांव का अस्तित्व ही मिट गया। कुछ लोग किसी तरह वहां से बचकर दूसरे जगह बस गए। तब से लेकर अब तक बगीचा और मंदिर ज्यों का त्यों अवस्थित है। मगर वर्तमान मे कुछ अतिक्रमण कारियों द्वारा उसे जबरन हड़प लिया गया है।

वन को नष्ट से रोकने के लिए ना ही वन विभाग की कोई टीम पहुंची। और ना ही कोई सत्ता के रक्षक जंगल पूरी तरह नष्ट हो गया। अब उस समतल जमीनों पर अतिक्रमण द्वारा खेती किया जा रहा है। और तलाब में मछली पालन किया जा रहा है। जबकि स्थानीय विधायक से लेकर सांसद तक इस बात से भलीभांति परिचित हैं। जबकि स्थानीय अधिकारियों ने भी कई बार इस पोखर तथा वनों का निरीक्षण किया है। मगर फिर भी अभी तक इसका कोई सुझाव नहीं आया है।

अब बात आती है आखिर कैसे बिना सरकार से अनुमति लिए इतने वृक्षों को काटे गए। आखिर किसनेे उन्हें अनुमति दिया की सभी वृक्ष को काट लिया जाए। बहुत ही जांच पड़ताल के बाद पता चला कि.. दरअसल, जिस लोगों ने यह से वृक्ष को काटा था। उसने पहले से ही सरकार को आवेदन देकर अनुमति ले लिया था। जिस आवेदन पर लिखा गया था, यह हमारी कुलदेवी है, और हमारी कुल देवी ने हमें यह बताया कि हमारे मंदिर को विशाल तरीके से बनाओ। और तुम चाहो तो वृक्ष को काट सकते हो। अब सवाल यह उठता है। क्या कुलदेवी के नाम पर 500 वृक्षों की हत्या करना “जल जीवन हरियाली” का सदुपयोग है। आखिर अधिकारियों ने कैसे कुलदेवी के नाम पर उन लोगों को वृक्ष करने का अनुमति दे दिया । इधर दूसरे तरफ वन विभाग के अधिकारियों से बातचीत के लिए फोन कॉल किया गया लेकिन उनका नम्बर नॉट रिचेबल बता रहा था।