दरोगा में दो बार असफल, वर्दी पहनने की तमन्ना लिए रेलवे में नौकरी और पढ़ाई‌ दोनों साथ रखा जारी .. तीसरे प्रयास में मार ली बाजी….

न्यूज डेस्क : खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है। इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है। बेगूसराय जिले के बलिया अनुमंडल अंतर्गत मीरअलीपुर निवासी अमर सिंह के सबसे छोटे पुत्र कन्हैया कुमार ने दारोगा बनकर जिले में गांव का नाम रोशन किया है। अब, बदन पर खाकी वर्दी शोभेगी और चेहरे की चमक बढ़ाएगी। दिलचस्प बात तो यह है कि कन्हैया बेहद ही गरीब परिवार से आते हैं। उनके पिता एक मध्यवर्गीय किसान है। और माता गृहिणी है।

कन्हैया तीन भाई बहन में सबसे छोटे हैं। आर्थिक तंगी होने के कारण किसी तरह रेलवे में टेक्नीशियन में जॉब मिला। लेकिन अंदर ही अंदर प्रशासनिक विभाग में जाने का भूत सवार था। रांची में रेलवे के पद पर कार्यरत होने के बावजूद भी पढ़ाई नहीं छोड़ा। सबसे ताजुक की बात यह है कि लगातार 2 बार दरोगा की परीक्षा में असफल हो गए। फिर भी हार नहीं मानी। अत: इस बार उन्होंने बाजी मार ही ली। लेकिन फिर भी इनका मुख्य उद्देश है कि अभी और आगे जाना है। अभी वर्तमान में 66वी बीपीएससी की मुख्य परीक्षा की तैयारी में लगे हैं। बता दें कि गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है कि जोश, जज्बे और मेहनत के समक्ष मुफलिसी का हिमालय बौना पड़ गया है।

तीसरे प्रयास में दारोगा में चयन होने की खबर ने लोगों को बधाई देने मेें जुटे है। लोग कहते हैं कि जब सुख सुविधाओं से संपन्न युवा अपनी कीमती समय को आत्मसंतुष्टि में बिता रहे होते हैं। ऐसे में सुविधाओं से वंचित इस छात्र ने अपनी दृढ़ संकल्पों के साथ सभी प्रकार की रुढिय़ों को तोड़ते हुए करियर की बुलंदियों को हासिल किया है। यह जीवंत उदाहरण दूसरों के लिए प्रेरणादायी है। कन्हैया ने RSAS हाई स्कूल बलिया से मैट्रिक के परीक्षा उत्तीर्ण की। तथा MRJD कॉलेज बेगूसराय से इंटरमीडिएट की परीक्षा ‌उत्तीर्ण की। और RCS कॉलेज मंझौल से इन्होंने ग्रेजुएशन कंप्लीट की।‌ बता दें कि कन्हैया अपना सफलता का श्रेय अपने ईश्वर समान माता-पिता के साथ मुख्य रूप से अपनी दादी को देते हैं। इन्होंने अपनी तैयारी में सहायक अभिषेक कुमार एवं अंकुर को आभार व्यक्त करते हैं। कन्हैया के माता – पिता की मानें तो लाखों मुसीबतें झेलकर पुत्र की पढ़ाई करवाने के बाद आज सारे क्लेश मिट गये